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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु० १, अ० ५, वृहस्पतिदत्तवर्णनम् ४६५ स महेश्वरदत्तः पुरोहितः 'एयकम्मे ४' एतत्कर्मकारी-'सुबहु पापं, 'जाव समजिणित्ता' यावत् समय-समुपायं 'तीसं वाससयाई' त्रिंशद्वर्षशतानि 'परमाउं' परमायुः, उत्कृष्टमायुष्यं ‘पालित्ता कालमासे कालं किच्चा' पालयित्वा कालमासे कालं कृत्वा 'पंचमाए पुढवीए' पञ्चम्यां पृथिव्यां धूमप्रभायां 'उकोसेणं' उत्कर्षेण 'सत्तरससागरोवमट्ठिइएमु नेरइएमु' सप्तदशसागरोपमस्थितिकेषु नैरयिकेषु 'नेरइयत्ताए' नैरयिकतया 'उववण्णे' उपपन्नः । ‘से णं ताओं' स खलु तस्याः पृथिव्या 'अणंतरं' अनन्तरम् 'उव्यट्टित्ता' उद्धृत्य 'इहेब' इहैव 'कोसंबीए नयरीए' कौशाम्ब्यां नगया 'सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववण्णे' 'सोमदत्तस्य पुरोहितस्य वसुदत्ताया भार्यायाः पुत्रतयोत्पन्नः। 'तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो' ततः खलु तस्य दारक 'तए णं' इस प्रकार से महेसरदत्ते पुरोहिए' यह महेश्वरदत्त पुरोहित कि 'एयकम्मे४' जिस का प्रतिदिन का यही निर्दय कर्म था। 'सुबहु पावकम्मं समन्जिणित्ता' घोरातिघोर पापकर्मों का संचय कर 'तीसं वाससयाई' तीन हजार ३००० वर्ष की 'परमाउं पालित्ता' उत्कृष्ट आयु को भोगकर 'कालमासे कालं किच्चा' मृत्यु के अवसर पर मर कर 'पंचमाए पुढवीए' धूमप्रभानामक पांचवीं पृथिवी में 'सत्तरससागरोवमट्टिइएसु' 'नरइएसु' उत्कृष्ट १७ सागर की स्थितिवाले नरक में 'नेरइयत्ताए' नारकीपने से 'उववण्णे' उत्पन्न हुआ । 'से णं ताओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव कोसंवीए णयरीए' वहां की पूर्ण स्थिति को भोगनेके अनंतर ही यह वहां से निकलकर इसी भरतक्षेत्र की कौशाम्बी नगरी में सोमदत्तस्स पुरोहियम्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववन्ने' सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता नामकी भार्या से पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ है 'तए णं ___'तए णं' या प्रमाणे 'से महेसरदत्ते पुरोहिए' ते महेश्व२४त्त पुरोहित 'एयकम्मे ४' रेनु शानु मे४ नि भतु 'सुबहु पावकम्मं समन्जिणित्ता' भने पाशतिधार पा५४भनि। संयय ४ीने 'तीसं वाससयाई' त्रय ४१२ ३००० वर्षनी 'परमाउं पालित्ता' geट मायुष्यने लोगवीन कालमासे कालं किच्चा' भृत्युना समय भ२६ पाभीने 'पंचमाए पुढवीए'धूमप्रभा नामनी पृथ्वीमा 'सत्तरससागरोवमहिइएस नेरइएसु' कृष्ट १७ सत्तर सापनी स्थिति न२४भां 'नेरइयत्ताए' ना२५९॥थी 'उववणे' उत्पन्न थयो, 'से णं ताओ अणंतरं उव्वहित्ता इहेव कोसंबीए णयरीए' त्यांनी स्थिति पूरी सागवान पछी ते त्यांची नीजाने मा भरतक्षेत्रनी शाली नगरीमा 'सोमदचस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववन्ने' सेमिहत्त पुरेशहितनी सुहत्ता नामानी पत्नीथी पुत्र३५ શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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