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________________ ४४५ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु. १, अ. ४, शकटवर्णनम् ष्यति । 'तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए रूपेण य जोवणेण य लावपणेण य' ततः खलु स शकटो दारकः सुदर्शनाया रूपे च यौवने च लावण्येन च 'मुच्छिए' मूच्छितः 'गिद्धे' गृद्धः, 'गढिए' ग्रथितः, 'अज्झोचवण्णे' अध्युपपन्नः, मूच्छितादीनां व्याख्याऽस्यैव द्वितीयाध्ययने १९ एकोनविंशतितमे मूत्रे कृता । 'सुदरिसणाए भगिणीए सद्धिं उरालाई सुदर्शनया भगिन्या सार्धमुदारान् 'माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरिस्सई' मानुष्यकान् भोगभोगान् भुञ्जानो विहरिष्यति ॥ सू० १३ ॥ ॥ मूलम् ॥ तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाइं सयमेव कूडग्गाहत्तं उवसंपजित्ता णं विहरिस्सह । तए णं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सइ, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। एयकम्मे सुबहु पावं समजिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिइ । संसारो तहेव जाव पुढवीसु । से णं तओ अणंतरं उहित्ता वाराणसीए णयरीए मच्छत्ताए उववजिहिइ । से णं तत्थ मच्छे मच्छवधिएहिं वहिए । तत्थेव वाणारसीए णयरीए सेट्रिकुलंसि पुत्तत्ताए पञ्चासुन्दर शरीरवाली बनजायगी । 'तए णं से सगडे दारए' वह शकट दारक 'सुदरिसणाए' इस सुदर्शना के 'रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य' उस अनुपम रूप में यौवन में और लावण्य में 'मुच्छिए४' मूच्छित होकर, गृद्ध होकर, ग्रथित होकर, अध्युपपन्न बनकर 'सुदरिसणाए भगिणीए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई, भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सइ' उस अपनी बहिन सुदर्शना के साथ उदार मनुष्यसमबन्धी कामभोगों को भोगेगा । ॥ सू० १३ ॥ मनी ४२. 'तए णं से सगडे दारए' ते २४८ ६.२४ 'मुदरिसणाए' मा सुशनाना 'रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य' ते अनुपम ३५मां, यौवनमा भने सायमा मुच्छिए ४' भूमित थन, शृद्ध थ/ने, अथित थ/ने, मयुपपन्न सनाने 'सुदरिसणाए भगिणीए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं इंजमाणे विहरिस्सई' ते पोतानी मेन सुहश नानी साथे २ मनुष्य संधी मलागाने लोगशे. (१० १३) શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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