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________________ विपाकश्रुते सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ णिच्छुभावेइ, णिच्छुभावित्ता सुदरिसणं गणियं अभितरए ठावेइ, ठावित्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाइं माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गिहाओ णिच्छूढे समाणे अण्णत्थ कत्थवि सुई वारइं वा धिइं वा अलभमाणे जाव विहरइ। तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाइं सुदरिसणाए अंतरं लभेइ, लभित्ता रहस्सियं सुदरिसणाए गिहं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सुदरिसणाए सद्धिं उरालाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ।सू० १०॥ टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से सगडे दारए सयाओ गिहाओ' ततः खलु स शकटो दारकः स्वकाद् गृहात् 'णिच्छूढे समाणे निक्षिप्तः निःसारितः सन् 'सोहांजणीए णयरीए' शोभाञ्जन्यां नगया 'सिंघाडग तहेव जाव' शृङ्गाटक तथैव यावत्'-अत्रैवं योजना-'शृङ्गाटक-त्रिक चतुष्क-चत्वर-महापथ-पथेषु, द्यूतखलकेषु, वेश्यागृहेषु, पानागारेषु, सुखसुखेन विहरति । ततः खलु स 'तए णं से' इत्यादि । _ 'तए णं' पश्चात् 'सयाओ गिहाओ णिच्छूढे समाणे' अपने घर से बाहर निकला हुवा “से सगडे दारए' वह शकट दारक 'साहांजणिए णयरीए' शोभाञ्जनी नगरी में 'सिंघाडग-तहेब जाव सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था' शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर और महापथादि में, जुआ खेलने के अड्डों में, वैश्याओं के वाटों में, दारुके पीठों में, निस्संकोच होकर घूमने-फिरने लगा । कोई अभिभावक ___'तए णं से' त्यादि. 'तए णं' पछी 'सयाओ गिहाओ णिच्छुढे समाणे' पोताना घरमाथा ५२ नज्या पछी 'से सगडे दारए' ते २४८ ६।२४ 'सोहांजणीए णयरीए' शqiral नगरीमा 'सिंघाडग-तहेव जाव सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था' शृंगाट४, २४, यतु, यत्१२ मने मायथा (मोटा २स्ता) भां, गा२ २भवाना અડ્ડાઓમાં, વેશ્યાઓના વાડામાં, દારૂના પીઠામાં નિસંકેચપણે ફરવા લાગ્યો, કે શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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