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विपाकचन्द्रिका टीका श्रु० १, अ०४, शकटस्यजन्मवर्णनम् । ४२५ दुप्पडियाणंदे जीवे ' यावत् दुष्पत्यानन्दः, 'अधर्मानुगः' इत्यादि विशेषणविशिष्टः, दुष्पत्यानन्दः दुष्कृत्यकरणेष्वेव प्रसन्नमनाः, एवंविधो जीवः 'ओयरिए' अवतरितः तव गर्ने समागत इत्यर्थः, 'तेणं एयारिसे दोहले पाउन्भूए' तेन कारणेन एतादृशो दोहदः प्रादुर्भूतः, 'तं होउणं एयरस पसायणं' तत्-तस्माद् भवतु खलु एतस्य-गर्भगतजीवस्य प्रसादनं प्रसन्नता 'त्ति कटु' इति कृत्वा= इति विमृश्य ‘से सुभद्दे सत्थवाहे केणवि उवाएणं तं दोहलं विणेई' स सुभद्रः सार्थवाहः केनाप्युपायेन मांसमदिरासदृशफल-तद्रसप्रदानरूपेण तं दोहदं विनयति पूरयति । तए णं सा भदा सत्यवाही 'संपुण्णदोहला' ततः खलु-दोहदपूय॑नन्तरं सा भद्रा सार्थवाही संपूर्णदोहदा समस्ताभिलषितपुरणात् 'संमाणियदोहला' समानितदोहदा वाञ्छितार्थसमानयनात्, 'विणीयदोहला' विनीतदोहदा संपूर्णअपने पूर्वसंचित पाप के प्रभाव से 'कोई कोई एक 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे जीवे ओयरिए' अधार्मिक आदि विशेषण विशिष्ट, एवं दूसरों को दुःख पहुंचाने में ही प्रसन्नता मनाने वाला जीव आया है "तेणं एयारिसे दोहले पाउब्भूए' इसी कारण तुझे यह दोहला उत्पन्न हुआ है 'तं होउ णं एयस्स पसायणं' तो इस गर्भगत जीव का भला हो त्तिकटु' ऐसा सोचकर 'से सुभदे सत्थवाहे' वह सुभद्र सार्थवाह केणवि उवाएणं' किसी उपाय से अर्थात् मांस-मदिरा के सदृश आकार के फल और रस को उसे देकर उसके 'तं दाहलं विणेई' उस दोहले को पूरा किया । 'तए णं सा भद्दा सत्थवाही' फिर यह भद्रा सार्थवाही 'संपुण्णदोहला' दोहले के पूर्ण होने पर, वांछित वस्तु की प्राप्ति से दोहले का 'संमाणियदोहला' सम्मान होने पर, ‘विणीयदोहला वोच्छिन्न दोहला संपन्नदोहला' समस्त मनोरथ के पूर्ण होने से अभिलाषकी निवृत्ति पापना प्रमाथी केई मे 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे जोवे ओयरिए' અધાર્મિક આદિ વિશેષણવિશિષ્ટ, અને બીજાઓને દુ:ખ પહોંચાડવામાં પિતે અનાદ मानना। ७१ २०ये। छ तेणं एयारिसे दोहले पाउन्भूए' ते ४॥२७था तन मा प्रा२ने होड-मनाथ पन्न थयो छे 'तं होउ णं एयस्स पसायणं' ते २मा गमभासा पर्नु सा३ थामे तिकट्ट' मेवा विया२ ४शने 'से सुभद्दे सत्थवाहे' ते सुभा साथ पाई 'केणवि उवाएणं' 15 ५५ उपायथी अर्थात् भांस-महिराना पा मारना ३७सने तेना २स स्त्रीने मापीने 'तं दोहलं विणेई' तेना होता (भना२३)ने ५२ ज्यो. 'तए णं सा भद्दा सत्थवाही' पछी ते मा सार्थवाही ' संपुण्णदोहला ' पोताना होडयो (भना२३) पूरे! यता, छित वस्तुनी प्रातिया होलानु 'संमाणि य दोहला' सन्मान थतi, 'विणीयदोहला वोच्छिन्न
શ્રી વિપાક સૂત્ર