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________________ ३८० विपाकश्रुते ततः खलु सोऽभग्नसेनश्चोरसेनापतिर्बहुभिः, 'मित्त-जाव-परिबुडे' मित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनैः परिवृतः, 'हाए जाव पायच्छित्ते' स्नातः पावत कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्तः, 'सव्वालंकारभूसिए' सर्वालङ्कारविभूषितः, 'सालाडवीओ चोरपल्लीओ'शालाटवीतश्चोरपल्लीतः 'पडिणिक्खमई' प्रतिनिष्क्रामति-निःसरति । 'पडिणिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य 'जेणेव पुरिमतालणयरे जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागच्छ।' यत्रैव पुरिमतालनगरं यत्रैव महाबलो राजा तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता करयलपडिग्गहियं महब्बलं रायं जएणं विजएणं बद्धावेइ' उपागत्य करतलपरिगृहीतं शिरआवर्त मस्तकेऽञ्जलिंकृत्वा महाबलं राजानं जयेन 'तए णं' कौटुम्बिक पुरुषों के वहां से प्रस्थान कर चुकने बाद से अभग्गसेणे चोरसेणावई। उस अभग्नसेन चोरसेनापतिने 'बहुहिं मित्त जाव परिखुडे ' अनेक अपने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन सम्बन्धी एवं परिजनों से परिवृत होकर 'हाए जाव पायच्छित्ते' स्नान किया । स्नान करने के बाद उसने कौतुक मंगल एवं प्रायश्चित्त कृत्य किये । इन सब से निवृत्त होकर बाद में 'सव्यालंकारविभूसिए' समस्त अलंकारों से विभूषित होकर वह 'सालाडवीओ चोरपल्लीओ' शालाटवीस्थित चोरपल्ली से 'पडिणिक्खमइ' निकला 'पडिणिक्खमित्ता' निकल कर जेणेव पुरिमतालणयरे जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागच्छइ' पुरिमताल नगर पहुंचा और वहाँ पहुँचते ही वह महाबल राजा के निकट जाकर उपस्थित होगया । “उवागच्छित्ता' उपस्थित होकर 'करयलपरिग्गाहियं० महब्बलं रायं जएणं विजएणं बद्धावेई' उसने राजा को हाथ जोड नमस्कार किया और जय विजय के नाद तए णं' औदु४ि पुरुषा त्यांथी २वाना थय। पछी. से अभग्गसेणे चोरसेणावई' ते मनसेन योरसेनापति - बहुहिं मित्त-जाव परिखुडे' पोताना અનેક મિત્ર, જ્ઞાતિ, નિજક, સ્વજન, સમ્બન્ધી અને પરિજનોની સાથે મલીને 'पहाए जाव पायच्छित्ते ' स्नान यु. स्नान ४ा पछी तेणे औतु म भने प्रायश्चित्त आय यु. मे तमाम मथी निवृत्त धन पछी 'सव्वालंकारविभूसिए' तमाम मशिथी शा२ सनत 'सालाडवीओ चोरपल्लीओ' लावीस्थित या२पसीथी 'पडिणिक्खमइ ' निन्यो 'पडिणिक्खमित्ता' नleी शन "जेणेव पुरिमतालणयरे जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागच्छइ' धुरिभतार નગર આવી પહોંચે અને પહોંચતા જ તુરતજ મહાબલ રાજાની પાસે જઈને ઉભો રહ્યો 'उवागच्छित्ता' उपस्थित थधने (न3 Son २हीने ) 'करयलपरिग्गहिय० महब्बलं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ' ते २an & डीन नमः।२ ४ा શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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