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विपाकश्रुते इत्यादि । 'रिद्धस्थिमियसमिद्धे' ऋद्धस्तिमितसमृद्धम् , ऋद्धं-नभःस्पर्शिवहुलप्रासादयुक्तं बहुलजनसंकुलं च, स्तिमितं-स्वपरचक्रभयरहितम् , समृद्धम् धनधान्यादिपूर्ण, पदत्रयस्य कर्मधारयः। विभवविस्तीर्ण शान्तिसम्पन्नं चेत्यर्थः । 'तत्थ णं पुरिमताले' तत्र खलु पुरिमतालनगरे 'उदये णाम राया' उदयो नाम राजा 'होत्था' आसीत् , स कीदृशः ? इत्याह-'महया.' महाहिमवन्महामलयमन्दरमहेन्द्रसारः। 'तत्थ णं पुरिमताले' तत्र खलु पुरिमताले नगरे 'निन्नए णामं अंडयवाणियए' निर्नयो नाम अण्डकवाणिजकः-अण्डान्येवाण्डकानि, तेषां वाणिजकः व्यापारी ‘होत्था' आसीत् । स कीदृशः ? इत्याह-'अड्ढे जाव अपरिभूए' इत्यादि, आढयो यावदपरिभूतः, तत्र-आढयः धनसम्पन्नः, यावद् अपरिभूतः परकृतपराभवरहितः 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे' अधार्मिको यावद् दुष्पत्यानन्दः । एषां पदानां व्याख्याऽत्रैव प्रथमाध्ययने चतुर्दशसूत्रे गता। नगर था । यह गगनस्पर्शी अनेक प्रासादों से युक्त और अनेक जनों से संकुल था । स्वचक्र और परचक्रका यहां भय नहीं था । एवं धान्यादिक से यह सदा परिपूर्ण रहता था । 'तत्थ णं पुरिमताले उदये णामं राया होत्था' वहां पुरिमताल नगर में उदय नामका एक राजा था । वह राजा कैसा था सो कहते है 'महया०' विशिष्ट शक्ति एवं बल से संपन्न था । 'तत्थ णं पुरिमताले निम्नए णामं अंडयवाणियए होत्था' उसी पुरिमताल नगर में एक निर्नय नामका व्यापारी था। इसके यहां अंडों का व्यापार होता था। 'अड्ढे० जाव अपरिभूए' यह धनशाली था, साथ में परकृत पराभव से भी रहित था। 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे' अधार्मिक एक नंबर का था । संतोष और शांति से रहित था, यह दूसरों को दुःख पहुंचाने में ही आनन्द मानता था। મહેલેથી યુક્ત અનેક વસ્તીથી વ્યાપ્ત હતું, સ્વચક્ર અને પરચક્રને ત્યાં ભય ન हतो, धन भने धान्यथी मे ते पूर्ण हेतु.. 'तत्थ णं पुरिमताले उदये णामं राया होत्था' या पुरिभतार नगरमा य नामनी मे in sat. त शत वो तो, ते ४ छे. 'महया विशिष्ट शठित भने मस सपन्न तो 'अड़ढे जाव अपरिभूए'त धनवान हतो, साथै भी पा तना पराभव शश तवा तो ' अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे ' अधम भी पूरी तो मर्थात પહેલા નંબરને હતો. સંતોષ અને શાંતિથી રહિત હતો, અને તે બીજા જેને દુઃખ પહોંચાડવામાંજ આનન્દ માનતો હતો.
શ્રી વિપાક સૂત્ર