________________
वि. टीका, श्रु० १, अ० २, उज्झितक जीवस्य श्रेष्ठिकुले जन्मग्रहणम् सहसकृत्वः=अनेकलक्षवारमुत्पत्स्यते । अत्र यद्वाच्यं तदत्र प्रथमाध्ययनस्यैकविंशतितमे सुत्रे द्रष्टव्यम् ।
'से णं' स खलु 'तओ अनंतरं' ततः तस्माद्भवात् अनन्तरम्, 'उव्वहित्ता' उद्वत्य = निःसृत्य, 'इहेव जंबूदीवे भारहे वासे चंपाए णयरीए' इहैव जम्बूद्वीपे भारते वर्षे चम्पायां नगर्यो 'महिसत्ता' महिपतया 'पच्चायाहिइ' प्रत्यायास्थति = उत्पत्स्यते । ' से णं तत्थ अण्णया कयावि' स खलु तत्रान्यदा कदाचित् 'गोल्लिए हिं' गौष्ठिकै := एकमण्डलीसदस्यैः समानवयस्कैः पुरुषै: 'जीवियाओ' जीवितात्, 'ववरोविए समाणे' व्यरोपितः सन् 'तत्थेव चंपाए यरीए सेद्विकुसि पुत्तताए' तत्रैव चम्पायां नगर्यां श्रेष्टिकुले पुत्रतया 'पच्चायाहिइ' प्रत्यायास्यति = उत्पत्स्यते ॥ स० २१ ॥
२८७
में उत्पन्न होगा | यहां पर जो कुछ भाव है प्रथम अध्ययन के २१ वें सूत्र से देख लेना चाहिये । इसके बाद से णं तओ अनंतरं उट्टित्ता हे जंबूदीवे दीवे भारहे वासे चंपाए णयरीए महिसताए पच्चायाहि' यह वहां से निकल कर इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्रमें जो चंपा नाम की नगरी है वहां महिष (पाडा) की पर्याय से उत्पन्न होगा । ' से णं तत्थ अण्णया कयावि गोलिएहिं जीवियाओ बबरोविए समाणे तत्थेव चंपारणयरीए सेहिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहि' वहां यह गोष्ठि कोंएक मण्डली के सदस्य समानवयवाले पुरुषोद्वारा मारे जाने पर उसी चम्पानगरी में किसी श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूपसे उत्पन्न होगा ।
भावार्थ- गौतम ने पुनः पूछा कि हे भदन्त ! यह उज्झित दारक इस पर्याय से मरकर अब कहाँ जायगा और कहाँ उत्पन्न होगा ? | प्रभु ने गौतम के इस प्रश्न का उत्तर मृगापुत्र - अध्ययन के अध्ययनना २१ अवसमा सूत्रमा लेड से लेहाय्य. ते पछी 'से णं तओ अणंतरं उम्बट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए णयरीए महिसनाए पचाया ' ते त्यांथी नीडजीने या मंजूदीपनां भरत क्षेत्रमां ने यथा नामनी नगरी छे त्या महिष (पाडा ) नी पर्यायथी उत्पन्न थथे. 'से णं तत्थ अण्णया कयावि गोलिएहिं जीवियाओं बबरोविए समाणे तत्थेव चंपाए णयरीए सेद्विकुलंसि पुतताए पच्चयाहि त्यां ते गोष्ठि - ४ मंडणीना सहस्य समानवयवाणा पुरुषो દ્વારા મરાયા પછી તે જ ચાનગરીમાં કેાઇ શેઠના કુલમાં પુત્રરૂપથી ઉત્પન્ન થશે. ભાવાર્થ ગૌતમે ફરીવાર પૂછ્યું કે: -હે ભદન્ત ! તે ઉક્તિ દ્વારક આ પર્યાયથી મરણ પામીને હવે કયાં જશે ? અને કયાં ઉત્પન્ન થશે ? પ્રભુએ ગૌતમના
,
શ્રી વિપાક સૂત્ર