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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु. १, अ. २, उज्झितक गोत्रासकूटग्राहपूर्वभववर्णनम् २६७ गणियाए सद्धिं संपलग्गे जाए यावि होत्था, कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाइंमाणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ।सू०१८॥ टीका _ 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से उज्झियदारए सयाओ गिहाओ' ततः खलु स उज्झितदारकः स्वकाद् गृहाद् 'निच्छूढे' निक्षिप्तः बहिष्कृतःनिःसारितः 'समाणे' सन् 'वाणियग्गामे णयरे' वाणिजग्रामे नगरे 'सिंघाडगजाव-पहेसु' शृङ्गाटक-यावत्-पथेषु, अत्र यावच्छब्दादेवं योज्यम्-शनाटक-त्रिकचतुष्क-चत्वर-महापथ-पथेषु इति । 'जयखलएसु द्यूतखलकेषु-धूतक्रीडास्थानेषु, 'वेसियाघरएसु' वेश्यागृह केषु 'पाणागारेसु य' पानागारेषु च-मद्यगृहेषु च 'मुहंमुहेणं' सुखसुखेन-अतिसुखेन 'विहरइ' विहरति-विचरति । 'तए णं से उज्झियए दारगे' ततः खलु स उज्झितको दारकः "अणोहट्टए' अनपघट्टकःअविद्यमानोऽपघट्टको यदृच्छया प्रवर्तमानस्य हस्तग्रहादिना निवर्तको यस्य स 'तए णं से' इत्यादि। 'तए णं' इसके अनन्तर ‘से उज्झियदारए वह उज्झित दारक 'सयाओ गिहाओ' अपने घर से 'णिच्छुढे समाणे' निकाला गया होकर 'वाणियग्गामे णयरे सिंघाडग-जाव-पहेसु' उसी वाणिजग्राम नगर में श्रृंगाटक (त्रिकोण) आदि मागों से लगाकर छोटी२ और बडी२ गलियों तक में 'जूयखलएसु वेसियाघरएम' तथा जुआ खेलने के अड्डों में, वेश्याओं के पाडों में, एवं 'पाणागारेसु' दारु के पीठों में-मदिरा पीने के स्थानों में 'सुहंमुहेणं' विना किसी संकोच के 'विहरइ' फिरने लगा। 'तए णं' इस से ‘से उज्झियए दारए' वह उज्झित दारक 'अणोहट्टए' अनपघटक-निरङ्कश बन गया, इच्छानुसार प्रवृत्ति करने से कोई रोकने वाला नहीं होने से यह यथेच्छ प्रवृत्ति 'तए णं से' त्याह. 'तए णं' ते पछी 'से उज्झियदारए' ते Glorist हा२७ 'सयाओ गिहाओ' पोताना घरमाथी णिच्छूढे समाणे' ढी भूये। 'वाणियग्गामे णयरे सिंघाडग-जाव- पहेसु' ते वायाम नाम गाट४ (त्रि) माह भाई ५२ थने नगरनी तमाम नानी-मोटी बीमामा 'जयखलएसु वेसियाघरएसु' तथा गार मेसनारना २मामा, वेश्यामाना पाभां, मने 'पाणागारेसु' ना भीमामा-महिश पीवाना स्थानमा 'सुहंसुहेणं' 8 प्र४२ना सजाय विना 'विहइर' ३२१॥ वायो. 'तए णं' ते २९४थी से उज्झियए' Glored th२४ 'अणोहट्टए' નિરંકુશ બની ગયે, અને ઈચ્છાનુસાર પ્રવૃત્તિ કરતા તેને કોઈ રોકવાવાળું નહિ હોવાથી શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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