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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १. अ० २, उज्झितकर्वभवगोत्रासकूटग्राहवर्णनम् २६३ बहहि मित्त-जाव परिवुडा रोयमाणी कंदभाणी विलवमाणी विजयमित्तस्स सत्थवाहस्त लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ । तए णं सा सुभदा अण्णया कयाइं लवणसमुद्दोतरणं च लच्छिविणासं च पोतविणासं च पइमरणं च अणुचिंतेमाणी २ कालधम्मुणा संजुत्ता। तए णं णयरगुत्तिया सुभदं सत्थवाहिं कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं साओ गिहाओ णिच्छभंति. णिच्छभित्ता तं गिहं अण्णस्त दलयंति ॥ सू० १७ ॥ टीका 'तए थे' इत्यादि । 'तए णं सा सुभदा सत्थवाही विजयमित्तं सत्थवाई लवणसमुद्दे' ततः खलु सा सुभद्रा सार्थवाही विजयमित्रं सार्थवाहं लवणसमुद्रे 'पोयविवत्तीए' पोतविपत्या पोतविनाशेन 'निव्वुड्डभंडसारं' निमग्नभाण्डसारम्-समुद्रान्तःपतितसमस्तपण्यधनकमित्यर्थः, कालधम्मुणा संजुत्तं' कालधर्मण संयुक्तं मृतं सुणेइ' शृणोति, 'मुणित्ता महया पइसोगेणं' श्रुत्वा महता पतिशोकेन 'अप्फुण्णा समाणी' आस्पृष्टा आहता-व्याकुला सती 'परसुनियत्ताविक 'तए णं सा' इत्यादि । 'तए पं' इस घटना के घट जाने के बाद 'सा सुभदा सत्थवाही' उस सुभद्रा सार्थवाहीने जब 'विजयमित्तं सत्थवाई' अपने पति विजयमित्र सार्थवाह के 'लवणसमुद्दे पोयवियत्तोए णिव्वुद्धभंडसारं' लवण समुद्र में जहाज उलट गया है, और समस्त पण्ययोग्य वस्तुएँ भी दूर गई हैं, 'कालधम्मणा संजुत्तं' और स्वयं वे कालधर्म से युक्त हो चुके हैं, इस वृत्तान्त को सुना तो 'मुणित्ता' सुनते ही वह 'महया पइसोएणं' पति के असह्य मरणशोक से 'अप्फुण्णा समाणी' व्याकुल 'तए णं से.' त्यादि. 'तए णं' 2 घटना मानी गया पछी 'सा सुभद्दा सत्यवाही'ते सुभद्रा सावाही त्या विजयमित्तं सत्थवाई पोताना पति वियभित्र सार्थवानुं 'लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए णिव्वुड्डभंडसारं' सव-समुद्रमा १९धु १णी आयु छ भने वेपारमा पेया ४२वा यास्य तमाम पस्तुमे। पर भी गई छे, 'कालधम्मुणा संजुत्तं' अने पोते वियभित्र ५ सय पाभी गया छ, मा वृत्तान्तने Nirl त्यारे 'सुणित्ता' त Airutine ते 'महया पइसोएणं' पति-भरना શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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