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________________ १९६ विपाकते निपुणा = चतुरा, तथा युक्तेषु = समुचितेषूपचारेषु कुशला, ततः पदद्वयस्य कर्मधारय: । 'सुंदर-थण - जहण-वयण-कर-चरण-नगण-लावण्ण-विलास - कलिया' सुन्दरस्तन- जघन-वंदन कर-चरण-नयन-लावण्य-विलासकलिता, सुन्दरस्तनजघनादिनयनान्तेषु लावण्यविलासयुक्तेत्यर्थः ऊसियज्झया' उच्छ्रितध्वजा - ऊर्ध्वोकृतजयपताका, 'सहसलंभा' सहस्रलाभा, सहस्रलाभः - गीतनृत्यादिकलाप्रदर्शनस्य शुल्कं यस्याः सा तथा, 'विदिष्णछत्तचामरवालवीयणिया' वितीर्णछत्रचामरवालव्यजनिका = छत्रं च चामरं च बालव्यजनिका चेति इन्द्रः छत्रचामरवालव्यजनिकाः, ता वितीर्णाः - भूपेन पारितोषिकतया दत्ता यस्यै सा तथा, 'कण्णीरहपयाया वि' निपुण - वक्रोक्ति आदि अलंकारसहित परस्पर संभाषण करने में विशेष विशारद, उचित उपचार करने में बहुत ही कुशल 'सुंदर थण- जहणवयण-कर-चरण-लावण्ण-विलास - कलिया', सुन्दर अंग-प्रत्यगों से युक्त, रमणीय जंघायों से मनोहर, चंद्रतुल्य मुख से संपन्न, कमल जैसे कर-चरण वाली, तथा लावण्य और विलास से विशिष्ट, अथवा लावण्य के विलास से सहित थी, 'ऊसियज्झया' जिसके विलासभवन पर सदा विजयपताका फहराती रहती थी, 'सहस्सलभा' जिसके गीत, नृत्य आदि कलाओं का शुल्क (फीस) सहस्रमुद्राये थीं, 'विदिण्णछत्तचामरवालवीयणिया' राजा की ओर से जिसे पारितोषिकरूप में छत्र चामर और बालव्यजन प्रदान किये गये थे, और 'कण्णीरहप्पयायावि' जो कर्णीरथ - प्रवहणविशेष में बैठकर गमन करनेवाली थी, ऐसी वह कामध्वजा नामकी वेश्या 'होत्था' थी । 'कण्णीरहप्पयाया वि' में નેત્રની ચેષ્ટામાં લલિતસ`લાપનિપુણવક્રોક્તિ આદિ અલકારસહિત પરસ્પર સભાષણ १२वाभां विशेष विशारह, उचित उपचार उरवामां मडुन पुराण, 'सुन्दर-थण - जहण -त्रयण -कर -चरण- लावण्ण-विलास - कलिया' सुंदर अंग-प्रत्यंगोथी ચુકત, રમણીય જ ઘાએથી મનેાહર, ચદ્રતુલ્ય મુખવાળી, કમળ સરખા કર-ચરણુ વાળી તથા લાવણ્ય અને વિલાસથી વિશિષ્ટ અથવા લાવણ્યપૂર્ણ-વિલાસ સહિત હતી, 4 ऊसियझया' भने भेना विद्यासलवन उपर तेना नामनी सहाय विश्यध्वलं ३२४ती हुती. भेवी 'सहस्सलमा ' नेना गीत, नृत्य याहि सामोनुं शुउ (परीस) सहस्रमुद्राभो तु. 'विदिष्णछत्तचामरवालवियणिया ' રાજા તરફથી જેણે धनाभभां छत्र, यामर भने मासव्यन्न भेजव्या हता भने ' कण्णीरहप्पयायावि ' જે કાણી રથ-વિશિષ્ટ પ્રકારની સવારીમાં બેસીને પ્રયાણ કરવાવાળી હતી. આ प्रमाणे शक्ति घशवनारी ते 'अभध्वल' नामनी वेश्या ' होत्या ' हती. શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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