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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु. १, अ. २, कामध्वजावेश्यावर्णनम् १९५ भासाचिसारया' अष्टादशदेशीयभाषाविशारदा 'सिंगारागारचारुवेसा' शृङ्गारागारचारुवेषा-शृङ्गारस्य शृङ्गाररसस्य अगारमिव गृहमिव चारुः शोभनो वेषो% नेपथ्यं वस्त्रादिरचना यस्याः सा तथा । 'गीय-रइ-गंधव-गट्ट-कुसला' गीत-रति-गन्धर्व-नाटय-कुशला-गीतरतिश्चासौ गन्धर्व-नाटय कुशला चेति समासः । गन्धर्व-नृत्ययुक्तगीतम्, नाटयं तु नृत्यमेव, तत्र कुशला । 'संगय-गय-हसिय-भणियविहिय-विलास-ललिय-संलाव-निउण-जुतोश्यार-कुसला' संगत-गत-हसित-भणित-विहित-विलास-ललिन-संलाप-निपुण-युकोपचार-कुशला-संगतेषु = समुचितेषु गतहसित-भणित-विहित-विलास-ललितसंलापेषु निपुणा, तत्र गतं-गमनं गजहंसादिवत्, हसितं-स्मितं, भणितं वचनं कोकिलवीगादिस्वरेण च युक्तं, विहितं-वेष्टितं, विलासो-नेत्रचेष्टा, ललितसंलापः-वक्रोक्त्याद्यलङ्कारसहितं परस्परं भाषणं, तेषु सोये हुए नव अंग-दो कान, दो नेत्र, दो नाक, एक जोभ, एक चमडी और एक मन-ये जिसके जग चुके हैं, अर्थात् जिसकी समस्त इन्द्रियां अपना२ विषय ग्रहण करने में बडी निपुण हैं. ऐसी थी। अट्ठारसदेसीभासाविसारया' वह १८ देशों की भाषा जाननेवाली थी, 'सिंगारागारचारुवेसा' शृंगार रस का घर, सुन्दर वस्त्राभूषणों से सजित वेषभूषावाली, गीय-रइ-गंधव-गट्ट-कुसला' विद्या में, रतिविद्या में और गन्धवें, नाटयकला (नृत्ययुक्त गीत का नाम गंधर्व, और केवल नाचने का नाम नाटय) इनमें कुशल, संगय-गय-हसिय-भणियविहिय-विलास-ललिय-संलाव-निउण-जुत्तोव-यार-कुसला संगत-समुचित गतगज एवं हंस आदि जैसी चाल चलने में. हसित-हसने में, भणित कोकिल जैसी वाणी बोलने में, विहित-अनेक प्रकार की मनको लुभाने वाली चेष्टाओं में विलास-नेत्र की चेष्टा में, ललितसंलापडती. 'णवंगसुत्तपडिबोहिया' सुतेखi न4 मे ४ान, मे नेत्र, नाना मे छिद्र, એક જીભ, એક ચામડી અને એક મન, તે જેનામાં જાગી ચૂકેલાં હતાં, અર્થાત્ જેની तमाम इन्द्रियो पात-पोताना विषयानु अ ४२वामा ४ निपुण उती. 'अट्ठारसदेसीभासाविसारया' 7 मा२ देशी भाषा नारी उती, 'सिंगारागारचारुवेसा' श॥२२सन ५२, सुन्दर वस्त्राभूषणथी सति वेष भूषापाणी, 'गीय-रइ-गंधव्य-णट्टकुसला' सात-विधामी, रति-वधामा मने गध, नाटय४सा (नृत्ययुश्त जात नाम अध, मने ५४त नायबार्नु नाम नाटय) तेभा पुस, संगय-गय-हसिय-भणियविहिय-विलास-ललिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयार कुसला, सात-समुथित गत-17 અને હંસ આદિ જેવી ચાલ ચાલનારી, હસિત-હસવામાં, ભણિત-કકિલા જેવી વાણું બોલવામાં, વિહિત-અનેક પ્રકારની મનને લેભાવે તેવી ચેષ્ટાઓમાં, વિલાસ શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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