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________________ १४० fauraya य मूलेहि य कंदेहि य पुप्फेहि य पत्तेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, णो चेव णं संचाएंति उवसामित्तए । तए णं ते बहवे विजा य विजपुत्ता य० जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमोव रोगायंक उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसिं पाउब्भूया, तामेव दिसिं पडिगया ॥ सू० १७ ॥ " टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घी - सणं सोचा निसम्म बहवे' ततः खलु विजयवर्धमाने खेटे इमामेतद्रूपामुद्धोषणां श्रुत्वा निशम्य बहवो 'विज्जाय ६' वैद्याश्व वैद्यपुत्राथ, ज्ञायकाश्च ज्ञायकपुत्राश्च, चैकित्सिकाश्च चैकित्सिक पुत्राच, 'सत्थको सहत्थगया' शस्त्रकोशहस्तगताः - शस्त्रकोशो = नखच्छेदनादिभाजनं हस्ते गतोऽवस्थितो येषां ते तथा, 'सएहिंतो २' ' तर णं' इत्यादि । , 6 , तए णं' घोषणा किये जाने के बाद, 'विजयवज्रमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घोसणं सोचा' विजयवर्द्धमान खेट में राजा की पूर्वोक्त घोषणा को सुनकर, और 'निसम्म ' हृदय में उसका निश्चय कर, ' बहवे विज्जा य ६ ' अनेक वैद्य और वैद्यों के पुत्र, ज्ञायक और उनके पुत्र, चिकित्सक और उनके पुत्र ये सब 'सत्थको सहत्थगया' छुरा, नहरणी आदि शस्त्रों की पेटी को हाथ में ले लेकर 'सएहिंतो२ गिहेहितो' अपने घरों 4 तए णं त्याहि 6 9 तए णं लहेरात अर्ध्या माह, 'विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा' विभयवर्द्धमान मेडमां रान्ननी पूर्वोस्त लहेरातने सांलजीने, मने 'निसम्म ' (हृध्यमां तेन। निश्चय उरीने ' बहवे विज्जा य ६' ने वैद्य અને વેદ્યાના પુત્રા, જાણકાર અને તેના પુત્રા, ચિકિત્સક અને તેના પુત્રા, એ તમામ ' सत्य को सहत्थगया ' छरी, नहरणी, माहि शखोनी पेटीने हाथभां लाने શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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