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________________ विपाकश्रुते मृगादेवीं 'गच्छानी'ति 'आपुच्छई' आपृच्छति, 'आपुच्छित्ता' आपृच्छय 'मियादेवीए गिहाओ' मृगादेव्या गृहात् 'पडिनिक्खमई' पतिनिष्क्रामति, 'पडिनिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य 'मियागामं नयरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ' मृगाग्रामस्य नगरस्य मध्यमध्येन निर्गच्छति, 'निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ' निर्गत्य यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरो विद्यते, तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो' उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं त्रिकृत्वः 'आयाहिणपयाहिणं' आदक्षिणप्रदक्षिणम्-अञ्जलिपुटं बद्ध्वा तं बद्धप्राञ्जलिपुटं दक्षिणकर्णमूलत आरभ्य ललाटप्रदेशे वामकर्णान्ति केन चक्राकारं त्रिः परिभ्राम्य ललाटदेशे स्थापनरूपं 'करेइ' करोति, 'करित्ता वंदइ नमसइ' कृत्वा वन्दते नमस्यति, 'वंदित्ता नमंसित्ता' चन्दित्वा नमस्यित्वा, ‘एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अवादीत् अभाषत ।।मू० १२॥ 'आपुच्छइ' जाने के लिये पूछा, और 'आपुच्छित्ता' पूछकर 'मियादेवीए गिहाओ पडिनिक्रवमइ' फिर वे मृगादेवी के घर से निकले, और 'पडिनिक्खमित्ता' निकलकर 'मियागामं णयरं मझमज्झेणं निग्गच्छइ' मृगाग्राम नगर के ठीक बीचोबीच होकर 'जेणेव समणे भगवं महावीरे' जहां पर श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे ‘तेणेव उवागच्छइ' वहां पर आ पहुँचे, 'उवागच्छित्ता' आते ही उन्होंने 'समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवान महावीर को ‘तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमसइ' तीन बार प्रदक्षिणापूर्वक वन्दना और नमस्कार किया, 'वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' वन्दना और नमस्कार करने के बाद वे भगवान महावीर से इस प्रकार बोले'त्ति कटु' में प्रभारी भाभा विया२ शने, 'मियादेवि भणे भृवाने 'आपुच्छइ' ११! भाटे पूछ्यु, मने 'आपुच्छित्ता' पूछीन 'मियादेवीए गिहाओ पडिनिक्खमइ' पछी ते भृवाना धेरथा निया, मने 'पडिनिक्खमित्ता' निजीने, 'मियागाम णगरं मझमज्झेणं निग्गच्छइ' भृायाम नगरना ॥२॥५२ क्यमा थधने 'जेणेव समणे भगवं महावीरे' ज्यां श्रममावान महावीर विमान उता 'तेणेव उवागच्छइ' त्या भावी पडाया, 'उवागच्छित्ता' आवतi त२४ तेभरे 'समणं भगवं महावीर' अभ न भडावा२ने 'तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमसइ' अशुपार प्रक्षिापू पन्ना भने नभ२४१२ ४ा, 'वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' कहना भने नभ७।२ ४ीने लगवान महावी२ पासे प्रभारी माया. શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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