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________________ विपाकश्रुते टीका 'तए णं इत्यादि । 'तए णं भगवओ गोयमस्स' ततः खलु भगवतो गौतमस्य 'तं मियापुत्तं दारयं पासित्ता' तं मृगापुत्रं दारकं दृष्ट्वा 'अयमेयारूवे' अयमेतद्रूप वक्ष्यमाणस्वरूपः, 'अज्झथिए' आध्यात्मिकः-आत्मगतः, 'चिंतिए' चिन्तितः पर्यालोचितः--पुनः पुनः स्मृतः, 'कप्पिए' कल्पितः कल्पनायुक्तः, 'पथिए' प्रार्थितः जिज्ञासितो 'मनोगए'मनोगतः मनोवर्ती संकप्पे'संकल्पा-विचारः 'समुप्पज्जित्था' समुदपद्यत प्रादुर्भूतः-'अहो ! णं' अहो ! आश्चर्य खलु 'इमे दारए अयं दारकः 'पुरापोराणाणं' पुरापुराणानां-पूर्वसम्बन्धिनां पुरातनानां 'दुच्चिण्णाणं' 'तए णं भगवओ०' इत्यादि । 'तए णं' इसके बाद 'मियापुत्तं दारयं' मृगापुत्र की परिस्थिति का 'पासित्ता' अवलोकन कर 'भगवओ गोयमस्स' भगवान गौतम को 'अयमेयारूवे' इस प्रकार का 'अज्झथिए' आत्मगत 'संकप्पे' संकल्प 'समुप्पज्जित्था' उत्पन्न हुआ। जिसमें 'चिंतिए' उन्हों ने बार२ विचार किया, 'कप्पिए' उस विचार में उनके हृदय में अनेक प्रकार की कल्पना भी उठी, 'पत्थिए' इन कल्पनाओं में सिर्फ एक यही विचार बार२ जिज्ञासित था कि-यह इस प्रकारकी हालत से युक्त क्यों हुआ है ?, 'मणोगए' यह उनका संकल्प अभीतक आत्मगत होकर भी बाह्यरूप में प्रकट नहीं हुआ था-सिर्फ मनके भीतर ही था। वह मनोगत संकल्प इस प्रकार का था- कि 'अहो इमे दारए पुरापोराणाणं दुचिण्णाणं दुप्पडिकंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फल तए णं भगवओ'त्यादि. 'तए णं' या२ ५४ 'मियापुत्तं दारयं' भृावनी परिस्थितिनु 'पासित्ता' असो ४रीने, 'भगवओ गोयमस्स' मावान गौतमने ' अयमेयारूवे ' मा प्रश्न! ' अज्झथिए' मामाने विष 'संकप्पे' ४८५ 'समुप्पज्जित्था' पन्न थयो. मा 'चिंतिए तभी वारंवार विचार ध्यो, 'कप्पिए' ते विचारमा तमना ध्यमा मने प्रनी ४८५ना ५५५ साी, 'पत्थिए' मा ४६पनाममा ठेक्स એક એ વિચારની વારંવાર જીજ્ઞાસા થઈ કે -આ મૃગાપુત્ર આ પ્રકારની હાલતમાં उपाशते माव्यो ?, 'मणोगए' मा प्रमाण भनी ४६५ हुनु सुधी मात्भात થઈને પણ બાહ્યરૂપમાં પ્રકટ થયે ન હતકેવળ મનની અંદરજ હતું. તે મને ગત ६५ २५0 ४२ना तो-' अहो इमे दारए पुरापोराणाणं दुचिण्णाणं दुप्पडिकंताणं अमुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पचणुब्भव શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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