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विपाकश्रुते गोयमे मियादेवीं एवं वयासी' ततः खलु भगवान् गौतमो मृगादेवीमेवमवादीत्-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरे' एवं खलु हे देवानुपिये ! मम धर्माचार्यः श्रमणो भगवान् महावीरः, 'जओ णं अहं जाणामि' यतः खलु अहं जानामि । 'जावं च गं' यावत-यावति काले च खलु 'मियादेवी भगवया गोयमेणं सद्धि' मृगादेवी भगवता गौतमेन सार्धम् , 'एयमहें' एतमय 'संलवई' संलपति-भाषते, 'तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स' तावत्काले च खलु मृगापुत्रस्य दारकस्य 'भत्तवेला' भक्तवेला-भोजनावसरः, 'जाया यावि होत्था' जाता चाप्यभवत् ।।
___ 'तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासी' ततः खलु सा मृगादेवी भगवन्तं गौतममेवमवादीत्-'तुब्भे णं भंते !' यूयं खलु हे भदन्त ! जिससे कि आपने इस समाचारको जाना है। 'तए णं' मृगादेवी की इस बात को सुनने के बाद भगवं गोयमे मियादेवि एवं वयासी' गौतमस्वामी ने उससे कहा कि 'देवाणुप्पिया! एवं खलु' हे देवानुप्रिये ! यह सब बात इस प्रकार है-'मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरें मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर हैं. 'जओ णं अहं जाणामि' उनसे मैने इस गुप्त बात को जानी है, 'मियादेवी जावं च णं भगवया गोयमेणं सद्धि एयमढें संलवई' मृगादेवी जबतक भगवान गौतम के साथ इस प्रकार की बातचीत कर रही थी कि 'तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था' इतने में ही मृगापुत्र के भोजन का समय भी हो गया।
'तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासी' पश्चात् वह मृगादेवी भगवान गौतमस्वामी से इस प्रकार कहने लगी कि2A पात Hinीन पछी 'भगवं गोयमे मियादेवि एवं वयासी' गौतमस्वाभीम तने gg:-'देवाणुप्पिये ! एवं खलु'वानुप्रिये ! ॥ तमाम बात मे प्रा२ छ :'मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरें भा॥ यायाय श्रम मगवान महावीर छे. 'जओ णं अहं जाणामि तेम्मानी पासेथी में २ गुप्त वातने one छे. 'मियादेवी जावं च णं भगवया गोयमेणं सद्धि एयमद्वं संलवई' भृावी. न्यारे लगवान गोलमनी साथे २॥ प्रानी वातयात उरती उती, 'तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था' मेटाwi Fuyan alrn. સમય પણ થઈ ગયે.
'तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी' પછી તે મૂગાદેવી ભગવાન ગૌતમ સ્વામીને આ પ્રમાણે કહેવા લાગી કે
શ્રી વિપાક સૂત્ર