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________________ विपाकश्रुते देवी मृगापुत्रस्य दारकस्य 'अणुमग्गजायए' पश्चाज्जातकान् , 'अणुमग्ग' इतिपश्चाद्वाचको देशीयः शब्दः, पश्चात् मृगापुत्रदारकजन्मानन्तरं जातका:-जन्म प्राप्ता ये ते तथा तान् 'चत्तारि पुने' चतुरः पुत्रान् 'सबालंकारविभूसिए करेइ' सर्वालङ्कारविभूषितान् करोति, 'करित्ता भगवओ गोयमस्स' कृत्वा भगवतो गौतमस्य ‘पाएम' पादयोः-चरणयोः-चरणद्वयोपरि 'पाडेइ' पातयति, 'पाडित्ता' पातयित्वा 'एवं वयासी' एवमवादीत्-- 'एए णं भंते ! मम पुत्ते पासह' एतान् खलु हे भदन्त ! मम पुत्रान् पश्यत । 'तए णं से भगवं गोयमे मियादेवि एवं वयासी' ततः खलु स भगवान् गौतमो मृगादेवीमेवमवादीत्-'नो खलु देवाणुप्पिए ! अहं एए तव पुत्ते पासिउं हन्धमागए' नो खलु हे देवानुप्रिये ! अहमेतांस्तव पुत्रान् द्रष्टुं शीघ्रमागतः, एतान् द्रष्टुं 'सा मियादेवी' वह मृगादेवी 'मियापुत्तस्स दारगस्स' मृगापुत्र दारक के 'अणुमग्गजायए' पीछे उत्पन्न हुए अपने 'चत्तारि पुत्ते' चार पुत्रों को 'सव्यालंकारविभूसिए करेइ समस्त अलंकारों से विभूषित करने लगी, 'करित्ता' और जब वे पूर्णरूप से अलंकृत हो चुके तब उसने उन्हें 'भगवओ गोयमस्स' भगवान गौतम के 'पाएमु पाडेइ' चरणों में सादर उपस्थित किये, और 'पाडित्ता' तत्पश्चात् ‘एवं वयासी' वह इस प्रकार बोली कि-'भंते !' हे भदन्त ! 'एए णं मम पुत्ते पासह' ये मेरे पुत्र हैं, आप इन्हें देखिये । 'तए णं' उसके इस प्रकार के शिष्टतापूर्ण व्यवहार को देखने के पश्चात् 'से भगवं गोयमे' वे भगवान गौतम 'मियादेवि एवं वयासी' पुनः उस मृगादेवी से कहने लगे-'देवाणुप्पिए' हे देवानुप्रिये ! 'अहं एए तव पुत्ते पासिउं नो खलु हव्वमागए' मैं तेरे सामनीने 'सा मियादेवी' ते भृगावी 'मियापुत्तस्स दारगस्स' भृापुत्र हा२४नी 'अणुमग्गजायए' पछीया उत्पन्न येता पोताना 'चत्तारि पुत्ते' या पुत्राने 'सव्वालंकारविभूसिए करेइ' तमाम साथी शणगारवा all, 'करित्ता' भने न्यारे तेने तमाम ॥२ थ/ रह्यो त्यारे तरी ते पुत्राने 'भगवओ गोयमस्स' भगवान गौतमना पाएसु पाडेइ' यीमा माइरसहित उभा राध्या, मने 'पाडित्ता' ते पछी 'एवं वयासी' ते ॥ प्रभा आ -भते!' हे महन्त ! 'एए ण मम पुत्ते पासह' मा भा॥ पुत्री छे, मा५ भने मा. 'तए णं तेन मा प्रा२ना शिष्टतापूर्ण व्यवहारने निधन पछी 'से भगवं गोयमे ते पान गौतम 'मियादेवि एवं वयासी' शथी ते भृवान ४341 साया. 'देवाणुप्पिये !' वानुप्रिये ! 'अहं एए तव पुत्ते पासिउं नो खलु हव्वमागए' ई ! 240 શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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