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प्रश्रव्याकरणसूत्रे दिस्वरूपम् , एपा द्वन्द्वः, तानि तथोक्तानि दृष्ष्टा, तथा-बहुविधानि=अनेकप काराणि च-पुनः ' अहियं ' अधिकम्-अत्यर्थ यथा स्यात्तथा 'नयणमणसुहकराई' नयनमनःसुखकराणि = नयनयोर्मनसश्च सुखकराणि-मुखोत्पादकानि 'मल्लाई' माल्यानि 'माला' इति भाषा प्रसिद्धानि तथा-' वणसंडे ' वनषण्डान्-एकजातीयानामनेकजातीयानां च वृक्षाणां समूहान् , ' पव्वए य ' पर्वताँश्च — गामागरनगराणि य ' ग्रामाकरनगराणि च दृष्ट्वा, तथा-' खुदियपुक्खरिणी-वावीदीहिय=गुंजालिय-सरसरपंतिय-सागर-विलपंतिय-खाइय-नई-सर-तलाग-विप्पिणो' क्षुद्रिका पुष्करिणी वापी दीर्घिका गुञ्जालिका सरः सरः पङ्क्तिका सागर -बिलपङ्क्तिका-खातिका-नदी-सरस्तडागवान् , तत्र-क्षुद्रिका लघुजलाशयविशेषः, पुष्करिणी-कमलवती बतुलाकारा वापी-चतुष्कोणा, दीर्घिकालम्वाकारवापी, गुञ्जालिका-चक्राकारवापी, सरः सरः पक्तिका=येषां मध्ये एकस्मात्तड़ागादपरस्मिस्तडागे जलं समायाति, एतादृशजलाशयसमूहः सरसरः पङिक्तकेको निहार कर, (देखकर) तथा (बहुविहाणि) अनेक प्रकार की (मल्लाई) मालाओं को कि जो (अहियं नयणमणसुहकराई) अधिक से अधिक रूप में नेत्र एवं मन को आह्लादकारक होती हों देखकर (वणसंडे) एक जातीय और अनेक जातीय वृक्षों के समूहों को ( पव्वए य) पर्वतों को गामागरणगराणि ) ग्राम, आकर, नगरों को (सुद्दिय पुक्खरिणी-वावी -दीहिय-गुंजालिय-सरसर-पति य-सागर-बिलपंति य-खाइय-नईसर-तलाग-वप्पिणो) क्षुद्रिका-लघु-जलाशय, पुष्करिणी-कमलों से युक्त गोल आकारवाली वावड़ी, वापी-चार कोनों वाली वावडी, दीपिका -लम्बे आकार बाली बावडी, गुजालिका-चक्र आकारवाली बावडी, सरः सरः पंक्ति-एक तालाब से दूसरे तालावों में जल जाने वाले तालाब के समूह, सागर-समुद्र बिलपंक्ति-बिलोंके जैसे आकार वाले कूओं की, सपातिम उपाय छे.ते मानेनन तथा"बहुविहाणि” मने प्रा२नी “मल्लाई" भावामा २ “अहियं नयणमणसुहकराई" मांग भने भनने वधारमा पधारे मानहाय डाय छे, तेमन ने वणसंडे" मे तन, मने तना वृक्षना सभूडाने "पव्वएय" ५वतीने, “गामागरणगराणि" आम, मा४२, नगाराने "खुद्दिय-पुक्खरिणी-वाबी- दीहिय-गुंजालिय सरसर-पतिय-सागर-बिलपतिय-खाइय- नई -सर-तलाग-वप्पिणो” शुद्रिा-नानुं ४ाशय, पु०४२ि०ी-माथी युद्धत गा. કારની વાવ, વાપી–ચાર ખૂણાવાળી વાવ સરકસરપંક્તિ -એક તળાવમાંથી બીજા તળાવમાં પાણી જતું હોય તેવાં તળાવોને સમૂહ, સાગર, બિલપંક્તિ-દરના
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર