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सुदशिनीटीका अ० ५ सू० ८ 'चक्षुरिन्द्रियसंवर' नामक द्वितीयनिरूपणम् ९०३ म्मे' लेप्यकर्मणिभिन्यादौ, 'सेले य' शैले= पाषाणे च ' दंतकम्मे ' दन्तकमणि - हस्तिदन्तादिषु यन्नर युगादीनामाकृतिरुह्यते तद्दन्तकर्म तस्मिंश्च ' पंचहिं वण्णेहिं पञ्चभिर्वर्णैर्युक्तानि, 'अणेगसंठाण संठियाई' अनेक संस्थानसंस्थितानि' अनेकानि = अनेकप्रकाराणि यानि संस्थानानि = आकृतयस्तैः संस्थितानि = युक्तानि, तथा - ' गंधिमवेढिमपूरिमसंघाइमाणि य ' ग्रन्थिमवेष्टिमपूरिमसंघातिमानि चः, तत्र - ग्रन्थिमं= ग्रन्थस्तेन निर्वृत्तं मालावत्, वेष्टिमम् = वेष्टनेन निर्वृत्तम् पुष्पगेन्दुकवत् पूरिमं= पूरणेन निर्वृत्तं यन्त्रे पित्तलादि रसपूरणेन निष्पादितं पुतलिकादिकम्, संघातिमम् = संघातेन निर्वृत्तम्, कपर्दिकादिसंघातेन निष्पादितं कुक्कुटापटियों पर उकेरा जाता है ( पोत्थे य) पुस्तकों से छापा जाता है, (चित्तकम्मे य) कागज आदि पर चित्रित किया जाता है मृत्तिका आदि में बनाया जाता है (लेप्पकम्मे ) रँग आदि से भित्ति आदि पर लिखा जाता है (सेले य) पाषण के ऊपर अंकित किया जाता है (दंतकम्मे य) हाथी दांत पर खोदा जाता है । इन सब पदार्थों के ऊपर उकेरे गये उन २ आकारों को ( पंचहिं वण्णेहिं ) पांच वर्णों से भरा जाकर बहुत ही सुन्दर रूप से आकर्षक बनाया जाता है। (अणेगसंठाणसंठियाई) भिन्न २ रूप में उन चित्रों को सजाया जाता है । इसी प्रकार ( गंधिमवेढिमपूरिमसंघाइमाणि य ) माला की तरह गूंथ २ कर जो चित्र बनाये जाते हैं वे ग्रन्थिम, पुष्पगेंद की तरह जो वेष्टित करके चित्र बनाये जाते हैं वे वेष्टिम, किसी पदार्थ पर जो पुत्तलिकादि की तरह रंग से भरकर चित्र बन जाते हैं वे पूरिम, तथा कौडी आदि के परस्पर जोड़ने से कुक्कुट आदि के जैसा जो रूप बनाया जाता है वह संघातिम है । इन सब चितराय छे, " पोत्थेय " पुस्तअभां छपाय छे. चित्तकम्मेय " કાગળ આદિ पर थितरवामां आवे छे, भाटी आद्दिथी मनाववामां आवे छे, “लेप्पकम्मे " रंग आद्दिथी द्विवास आदि पर आतेभाय छे, " सेलेय " पथ्थर पर अतराय छे, " दंतकम्मेय " हाथीहांत पर अतरवामां आवे छे, ते सधना पहार्थो ५२ मठित उरेल ते याअरोने “प' चाहिं वण्णेहिं " यांय रंगो सगाडीने हुन સુંદર અને આકર્ષક मनावाय छे. “अणेगसंठाणसंठियाई ” लिन्न लिन्न रीते તેની સજાવટ संघमाणि य કરાય છે. એ જ રીતે માળાની જેમ ગૂંથી ગૂંથીને જે ચિત્ર બનાવવામાં આવે છે તે ગ્રથિમ, પુષ્પના દડાની જેમ જે ચિત્ર વેષ્ટિત કરીને બનાવાય છે. વેષ્ટિમ, કોઈ પદાર્થ પર પુતળી આદિની જેમ રગથી ભરીને જે ચિત્ર બનાવાય છે તે પૂરિમ, તથા કોડી આદિને એક ખીજામાં પરોવીને કૂકડા આદિ જેવા જે આકાર બનાવાય છે તે
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
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