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________________ I mmacar ७७४ प्रश्रव्याकरणसूत्रे संजममूलदलियणिभं ' तपः-संयममूलदलिकनिमम तपः संयमयोः मूलदलिकंमूलद्रव्यम्-मूलधनमित्यर्थः, तस्य निभं सदृशं यत्तत्तथा, तथा- पंचमहव्वयसुरक्खिय' पञ्चमहाव्रतसुरक्षितं पश्चमहाव्रतानां मध्यस्थितत्वेन सुष्ठुरक्षितमिव यत्ततथोक्तम् , तथा ' समिइगुत्तिगुत्तं' समितिगुप्तिगुप्तम्-समितिभिः ईर्यासमित्यादिभिः, गुप्तिभिः मनोगुप्त्यादिभिश्च गुप्तम्-रक्षितम् , तथा-'झाणवरकवाडसुकयरक्खणं' ध्यानवरमेव-धर्मध्यानमेव कपाटम्-तेन सुष्टु-शोभनतया कृतं रक्षण यस्य तत् , तथा-' अज्झप्पदिण्णफलिहं' अध्यात्मदत्तपरिघम् अध्यात्ममेव सद्भावएव कपाटदृढीकरणाथै दत्तः परिधः-अर्गला रक्षायें यस्य तत् , तथा-'संनद्धबद्धोच्छइयदुग्गइपहं ' संनवद्धावच्छादितदुर्गतिपथम्-संनद्धोबद्धआव्छादितश्व अर्थात् सर्वतो निरुद्धो दुर्गतिपथो-दुर्गतिमार्गों येन तत्तथोक्तम् , तथा-' सुगइपमूलदलियणिभं ) तप और संयम का यह ब्रह्मवर्य मूल धन जैसा है। (पंचमहव्वयसुरक्खियं ) जिस प्रकार पांच पुरुषों के बीच में रहा हुआ पुरुष सुरक्षित रहता है उसी प्रकार यह ब्रह्मचर्य भी पांच महाव्रतों के गच में स्थित होने के कारण सुरक्षित के जैसा है । (समिइगुत्तिगुत्त) ईर्यासमिति आदि पांच समितियों से एवं मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तियों से भी इसकी सदा रक्षा होती रहती है इसलिये यह समिति और गुप्तियों से भी गुप्त-सुरक्षित कहा गया है। तथा (झाणवरकवाड सुकयरक्खणं ) इसकी रक्षा सदा धर्मध्यान रूप मजबूत किवाड़ों से भी बहुत अच्छी तरह होती रहती है (अज्झप्पदण्णफलिहं इसकी रक्षा के निमित्त इन किवाडों में मजबूती लाने वाला अर्गला जैसा अध्यात्म-सद्भाव वहां काम करता है। ( सन्नद्धबद्धोच्छइयदुग्गइपहं ) यह ब्रह्मचर्य अपने पालक के दुर्गतिमार्ग को सर्वथा रोक देता है, (सुगइ २३॥ तेने माही भवियमित शव्यु छ. “ तवसंजममूलदलियणिभं" तय भने सयभनु मा ब्रह्मचर्य भूणधन समान छ. “पंचमहव्वयसुरक्खियं " જે રીતે પાંચ પુરુષોની વચ્ચે રહેતે પુરુષ સુરક્ષિત રહે છે, તે જ પ્રમાણે मा अवयय ५५ पाय महातानी १२ये २हेस डावाथी सुरक्षित छ. “ समिइगुत्तिगुत्तं ""झा ध्यो समिति माह पांय समितिमाथी भने मनाशुति माह ત્રણ ગુણિથી પણ તેનું સદા રક્ષણ થતું રહે છે, તે કારણે તે સમિતિ અને शुतियोथी पर गुस-सुरक्षित वायु छ. तथा “ झाणवर कवाडसुक्य रक्खणं " તેનું રક્ષણ હમશા હૈિયે ધ્યાનરૂપી મજબૂત કમાડાથી પણ ઘણું સારી રીતે शेते थय। ४२ छ “ अण्झप्पदिण्णफलिहं" तेनी २क्षाने निमत्त ते ४भाडामा મજબૂતી લાવનાર આગળીયા જેવું અધ્યાત્મ-સભાવ ત્યાં કામ આપે છે. " सन्नदबद्धोच्छइयदुग्गइपहं” 24। प्राययं तेनु सेवन ४२ना२ना गतिभागने શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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