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________________ ७७४ प्रश्रव्याकरणसूत्रे क्तम् , ब्रह्मचारिणोऽन्तःकरणं प्रशस्ततागाम्भीर्यस्थैर्ययुक्तं भवतीति भावः । तथा - ' अज्जवसाहुजणाचरियं ' आर्जवसाधुजनाचरितम्-आर्जवेन्सरलभावे संलग्ना ये साधुजनास्तैराचरितम् । तथा ' मोक्खमग्गे ' मोक्षमार्गः मोक्षस्थानप्रापक इत्यर्थः तथा 'विसुद्धसिद्धिगइनिलये' विशुद्धसिद्धगतिनिलयः विशुद्धा रागादिदोषवजितत्वान्निर्मलाया सिद्धिः कृतकृत्यता, सैव गम्यमानत्वाद् गतिस्तस्या निलयोगृहम्-सिद्धिगतिप्रापकत्वात्सिद्विस्थानमित्यर्थः, तथा 'सासयं ' शाश्वतं साद्यपर्यवसितशिवसुखजनकत्वात् , ' अव्वावाहं ' अव्यावाधं-शारीरिकमानसिकदुः खर्जितत्वात् 'अपुणब्मवं' अपुनर्भवम् पुनर्जन्मप्रतिरोधकत्वात् , ‘पसत्थं ' प्रशस्तम्-निर्मलत्वात् , तथा-' सौम्मं ' सौम्यम्--सकलजनमनोमोदजनकत्वात् , कर्ता का अंतःकरण शुभ, गंभीर-अगाध, एवं स्थिर हो जाता है । तथा (अजवसाहुजणाचरियं ) यह ब्रह्मचर्य, आर्जव में-सरल भाव में-संलग्न बने हुए साधुजनों के द्वारा आचरित किया जाता है। तथा-(मोक्ख मग्गे ) यह ब्रह्मचर्य अपने पालनकर्ता को मोक्ष स्थान की प्राप्ति कराने वाला होता है तथा ( विसुद्धसिद्धिगइ निलये ) यह ब्रह्मचर्य विशुद्धरागादि दोषों से वर्जित होने के कारण निर्मल-जो कृतकृत्यता रूप गति है उसका घर है-सिद्धि गति का प्रापक होने से सिद्धि का स्थान है तथा (सासयं) साद्यपर्यवसित शिव सुख का जनक होने से यह ब्रह्मचर्य शाश्वत है ( अव्वाबाहं ) शारीरिक एवं मानसिक दुःखों से रहित होने के कारण यह ब्रह्मचर्य अव्यायाध-बाधा से रहित है। ( अपुणब्भवं ) इसके प्रभाव से संसार में जीव का पुनर्जन्म नहीं होता, उसका यह प्रतिरोधक है इसलिये यह अपुनर्भवरूप है। (पसत्थं निर्मल मियमज्झ" ते ब्रह्मययन! पावनथी तेनुं पासन ४२ना२नु मत:४२९ शुम, भी२, २५॥ध, मने स्थि२ ५७ सय छ. तथा “ अज्जवसाहुजण चरियं" આ બ્રહ્મચર્ય, આર્જવ, સરલ ભાવમાં લીન થયેલ સાધુજને દ્વારા આચરવામાં आवे छे. तथा “ मोक्खमग्गे " मा ब्रह्मयर्थ, तेनुं पासन ४२नारने भाक्षनी प्राति रावना२ सय छे. तथा “ विसुद्धसिद्धिगइनिलये' ! प्रायय विशुद्ध રાગાદિ દેથી રહિત હોવાને લીધે નિર્મળ-કે કૃતકૃત્યતા રૂપ ગતિ છે તેનું घ२ छ-सिद्धिगति प्राप्त ४२२वाना२ डापाथी सिदिनुं स्थान छ, तथा “ सासयं" छायमी शिव सुमन न होवाथी मा ब्रह्मय शाश्वत छ “ अव्वावाह" શારીરિક અને માનસિક દુઃખેથી રહિત હોવાને કારણે આ બ્રહ્મચર્ય અવ્યાमाथ-साधाथी २डित छ, “ अपुणब्भय" तेना प्रभावथी संसारमा ने પુનર્જન્મ લે પડતો નથી. તેનું તે પ્રતિરોધક છે તેથી તે અપુનર્ભવરૂપ છે. શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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