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________________ ७२८ प्रश्रव्याकरणसूत्रे भंडोवहिउवगरण, नय परिवाय परस्स जंपइ, न यावि दोसे परस्स गेण्हइ, पर ववएसेण वि न किचिं गेण्हइ, ण य विपरिमाणइ कंचिजणं, ण यावि णासेइ दिण्णसुनयं, दाऊण य काऊण य ण होइ; पच्छाताविए, संविभाग-सीले, संगहो वग्गहकुसले, से तारिसए आराहेइ वयमिणं ॥ सू०४ ॥ टीका-'अह' अथेति प्रश्ने, केरिसए' कीदृशः साधुः ‘पुणाई' 'वयमिणं' व्रतमिदम् अदत्तादानविरमणरूपमिदं व्रतम् , ' आराहए' आराधयति ? इति प्रश्ने सति प्राह-'जे से ' यः सः ' उवहिभत्तपाणसंगहणदाणकुसले' उपधिभक्तपानसंग्रहणदानकुशलः तत्र उपधिः वस्त्रपात्रादिः, भक्तपाने प्रसिद्ध तेषां संग्रहणे आदाने साधर्मिकेभ्यो दाने च कुशलो विधिज्ञो मुनिः। 'अच्चतबाल दुब्बलगिलाण वुड्र खवगपवत्तय आयरिय उपज्झाए सेहे साहम्मिए तवस्सि कुल गण संधे य' अत्यन्त वालदुर्बलग्लानवृद्धमासक्षपकप्रवर्तकाचार्योपाध्याये शैक्षे अब सूत्रकार इस महाव्रत की आराधना करने के लिये कैसा साधु समर्थ हो सकता है ? यह कहते हैं-'अह केरिसए' इत्यादि। टीकार्थ - (अह केरिसए पुणाई वयमिणं आराहए ?) कैसा साधु इस अदत्तादानविरमणरूप महाव्रत की आराधना कर सकता है ? इसके उत्तर में कहते हैं - (जे से ) जो साधु ( उवहिभत्तपाण संगहणदाणकुसले ) उपधि वस्त्र पात्र आदि, एवं भक्तपात्र, इनको अपने साधर्मिक साधुओं के लिये लेने में और उन्हें इन वस्तुओं के देने में कुशलविधिज्ञ-होता है, तथा ( अच्चंतबालदुब्बलगिलाणबुडखवगपवत्तय आयरियउवज्झाए ) जो संघ में अत्यंत बाल हैं--आठ वर्ष के હવે આ મહાવ્રતની આરાધના કરવાને માટે કે સાધુ સમર્થ છે श: छे ते सूत्र४२ मतावे छ “ अह केरिसए" UAE टी -“अह केरिसए पुणाईवयमिणं आराहए?" । साधु २मा महत्तहान વિરમણરૂપ મહાવ્રતની આરાધના કરી શકે છે? તેના જવાબથાં સૂત્રકાર કહે छे-“जे से” हे साधु “ उवहिभत्तपाणसंगहणदाणकुसले" ५धि, पस, પાત્ર આદિ અને આહાર પાણી, પિતાના સાધર્મિક સાધુઓને માટે લેવામાં भने तेभने ते वस्तु हेवामा पुश-विधिज्ञ-डाय छ, तथा “ अच्चंतबाल दुब्बलविलाणवखवगपवत्तयआयरियउवज्झाए " २२ सभा सत्यत બાળ છે--આઠ વર્ષના બાળ સાધુ છે, તથા જે દુર્બલ છે-કમજોર હોવાથી શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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