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________________ सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० २ प्रथम अधर्मद्वारनिरूपणम् 'यथोद्देशं निर्देशः, इति न्यायेन फलतो नामतश्चास्रवप्रकारानाह'पंचविहो' इत्यादि। मूलम्-पंचविहो पण्णत्तो जिणेहिं इह अण्हओ अणादीओ। हिंसा मोस२ मदत्तं ३ अबंभं परिग्गहं ५ चेव ॥सू०२॥ टीका-जिणेहिं' जिनैः रागाद्यन्तरङ्गरिपुविजेतृभिरर्हद्भिः इह-जिनशासने संसारे वा, 'अण्हओ' आस्रवः 'अणादीओ' अनादिकः-नास्यादिः प्रथमोत्पत्तिर्विद्यते इत्यनादिकः। उपलक्षणत्वादस्य 'अपर्यवसितः' इत्यपि दृश्यम् , प्राणातिपातादिरूप भाव, प्राणातिपात आदि विरमणरूप भावसंवर से प्रतिरुद्ध होते हैं । और ऐसा होने से ही कर्मों का आगमन रुकता है। "निश्चयार्थ"में 'निः' शब्दका अर्थ दूर होना है। तथा चयका अर्थ ज्ञानावरणीयादि कर्मपुंज है। वह कर्मपुंज जिस स्थानसे दूर हो चुका है ऐसा वह स्थान मोक्ष है, और यह मोक्ष जिसका प्रयोजन है वह निश्चयार्थ शास्त्र है। अथवा निश्चय का अर्थ मोक्ष है । इस मोक्ष की प्राप्ति के लिये ही इस शास्त्र का प्रणयन हुआ है ॥सू०१॥ उद्देशके अनुसार ही निर्देश हुआ करता है इस न्याय को लेकर सूत्रकार फल और नाम की अपेक्षा अब आस्रव के प्रकारों को प्रकट करते हैं-'पंचविहो पण्णत्तो' इत्यादि। टीकार्थ-(जिणेहिं) जिनेन्द्र देवने (इह) अर्हन्त प्रभुके शासनमें अथवा इस संसार में (अण्हओ) आस्रव (अणादीओ ) अनादि (पण्णत्तो) સમાન છે. પ્રાણાતિપાતાદિરૂપ ભાવ, પ્રાણાતિપાત આદિ વિરમણરૂપ ભાવસંવરથી અટકે છે. અને એમ થવાથી જ નવીન કર્મોનું આગમન રેકાય છે. "निश्चयार्थ' मा “निः" शहने। Aथ (२ थ' थाय छे. तथा 'चय'न। અર્થ જ્ઞાનાવરણીયાદિ કર્મjજ છે. તે કમપેજ જે સ્થાનથી દૂર થઈ ગયા છે તેવું સ્થાન મોક્ષ છે. અને તે મેલ જેનું પ્રજન છે તે નિશ્ચયાર્થ શાસ્ત્ર છે. અથવા નિશ્ચયને અર્થ મેક્ષ પણ થાય છે. એ મોક્ષની પ્રાપ્તિને માટે જ मा शाखनी श्यना ४२वामा वी. छ. ॥ सू. १॥ ઉદ્દેશ પ્રમાણે જ નિર્દેશ થયા કરે છે તે ન્યાયે સૂત્રકાર ફળ અને નામની अपेक्षा वे भासवाना प्राशने प्रगट ३३ छ- 'पंचविहो पण्णत्तो" प्रत्याहि. टी-“जिणेहिं" मिनेन्द्र देव "इह" मत प्रभुना शासनमां, गेटवे ! ससारमा “ अण्हओ” मावाने “अणादीओ" मना " पण्णत्तो” प्रज्ञा શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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