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सुदर्शिनी टीका अ०२ सू० ९ अध्ययनोपसंहारः
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नेतव्यः = पालनीयः ' धिमया' धृतिमता ' महमया' मतिमता - मेधाविना कथंभूतोऽयं योगः ? इत्याह-' अणासवो ' अनाश्रव: ' अकलुसो ' अकलुपः च्छिदो ' अच्छिद्र: ' अपरिस्सावी ' अपरिस्रावी ' असंकिलिट्ठो' असंक्लिष्टः 'सव्वजिण मणुण्णाओ सर्वजिनानुज्ञातश्च । एवम् = एतादृशमिदं 'वीयं द्वितीयं ' संवरदारं ' संवरद्वारं ' फासियं ' स्पृष्टं' पालियं ' पालितं ' ' सोहियं' शोधितं 'तीरियं ' तीरितं ' किट्टियं कीर्त्तितम् ' आराहियं ' आराधितम् 'आणाए' आज्ञया यथावत् ' अणुपालियं ' अनुपालितं ' भवति । एवम्=अमुना प्रकारेण 'णापादेय के विवेक से युक्त हुए मुनिजन को ( णेयव्वो) पालन करने योग्य है, क्योंकि यह सत्य महाव्रतरूप योग ( अणासव) नूतनकर्मो के आस्रव को रोकने वाला होने से अनास्रव रूप है, ( अकलुसो ) अशुभ अध्यवसाय से रहित होने के कारण अकलुषरूप हैं (अच्छिद्दो) पाप का स्रोत इससे बंद हो जाता है इसलिये अच्छिद्ररूप है, (अपरिसावी) एक बिन्दुमात्र भी कर्मरूप जल इसमें प्रविष्ट नहीं हो सकता है इसलिये यह अपरिस्रावी है, (असंकिलिट्ठो) असमाधिरूप भावसे यह वर्जित होता है इसलिये असंक्लिष्ट है । ( सव्वजिण मणुण्णाओ ) इसीलिये यह समस्त भूत, भविष्यत्, और वर्तमान काल के तीर्थकरों को मान्य हुआ है । ( एवं ) इस उक्त प्रकार से (बीयं) द्वितीय संवर द्वार को जो मुनिजन ( फासियं ) अपने शरीर से स्पर्श करते हैं, (पालियं ) निरन्तर ध्यानपूर्वक इसका सेवन करते हैं, (सोहियं) अतिचारों से इसे रहित बनाते हैं, ( तीरियं ) पूर्णरूप से इसे अपने जीवन में उतारते हैं, (किट्टियं ) दूसरों को इसे धारण करने का उपदेश देते
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શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
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३५ योग “ अणासवो ” नवां उभेना आसवने शेडनार होवाथी अनावश्य अकलुसो " अशुल अध्यवसायरहित होवाथी अम्बुषय " अच्छिद्दो" पापना स्रोत तेनाथी अध थ लय छे तेथी सछिद्र३५ छे, " अपरिस्सावी " थोड બિન્દુ પણ કર્મરૂપી જળ તેમાં પ્રવેશી શકતુ નથી, તેથી તે અપરિસાવી છે, ' असं किलिट्ठो " असमाधिय लावथी ते रहित होय छे तेथी ते असहिष्ट छे. सव्वणिमण्णाओ " तेथी ते समस्त भूत, भविष्य भने वर्तमानअजना तीर्थ पुरोये मान्य उरेल छे. " एवं " मा उधुं ते अक्षरे " बीय " બીજા સંવરદ્વારને જે મુનિજન " फासिय " पोताना शरीरथी स्पर्शे छे, " पालिय " निरन्तर ध्यानपूर्व तेनु सेवन रे छे, " सोहिय " अतिया रोथी रहित मनावे छे, “ तीरिय" पूर्ण रीते तेने पोताना वनभां उतारे छे. खाना उपदेश आये छे, तथा
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किट्टिय " मन्यने तेनुं सेवन
66 'अणुपा.