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सुदर्शिनी टोका अ० १ सू०९ भावनास्वरूपनिरूपणम्
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दत्ते सति ' भुङक्ष्व त्वमशनादिक ' मित्यनुज्ञाते वा सति, 'उवविट्ठे' उचितासने उपविष्टः सन् 'ससीसं कार्य ' सशीर्ष कार्य= सपूर्ण शरीरं, तथा= 'करयलं करतलं च ' संपमज्जिऊण ' संप्रमाज्ये अमुच्छिए' अमूर्च्छितः = आहारविषये मृच्छीरहितः ' अगिध्धे ' अगृद्धः - अमाप्तरसेऽप्याङ्क्षारहितः, ' अगढिए ' अग्रथितः = रसानुगताकाङ्क्षारूपतन्तुजालैरनाबद्धः, तथा-' अगरहिए ' अगर्हितः आहारविपयै अकृताहारगर्हः, अकृतदातृगर्हश्चेत्यर्थः तथा-' अणज्झोववण्णे ' अनभ्युपपन्नः= रसविषये लोलुपतावर्जितः, तथा - ' अणाइले ' अमाविल: = अकलुषः ' अलुदे ' अलुब्धो - लोभरहितः, तथा ' अणत्तट्टिए ' अनात्मार्थिकः = न केवलमात्मस्वर्थीपरमार्थकारीत्यर्थः, असुरसुरं ' सुरसुरेशब्दरहितम्, ' अचवचवम्' चपड़ चपड़
दिया हुआ आहार " तुम भोजन करो " इस प्रकार आज्ञा मिलने पर वह साधु ( उबविट्ठे ) उचित आसन पर बैठ कर (ससीसं कार्य करयलं सपमज्जिऊण ) मस्तक से लेकर अपने समस्त शरीर को और करतल को अच्छी तरह प्रमार्जित करे । प्रमार्जित करके ( अमुच्छिए ) आहार के विषय में अमूच्छि बना हुआ वह साधु ( अगिद्धे ) अप्राप्त रस में आकांक्षा से रहित, तथा (अगढिए ) रसानुगत आकांक्षा रूप तन्तुजाल से, अनावद्ध तथा ( अगर हिए ) - आहार के विषय में अथवा दाता के विषय में गर्दा करने से रहित और (अणज्झोववण्णे) रस के विषय में लोलुपता से विहीन बन कर आहार करें । उस समय वह (अणाइले ) अनाविल - अकलुए और ( अलुद्धे ) अलुब्ध-लोभरहित होकर (अणतट्ठिए) अनात्मार्थिक- केवल आत्मस्वार्थी न बनता हुआ आहार करते समय वह ( असुरसुरं ) सुर सुर
तथा "अगढिए "
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भजता ते साधु " उबबिट्टे" योग्य आसन पर मेसीने "ससीसं कार्यकरयल समज्जिऊण " शिरथी बहने पोताना भाषा शरीरने तथा इथेजीने सारी रीते प्रभान्ति पुरीने " अमुच्छिए " आहारना विषयभां अभूर्च्छित जनीने તે સાધુ 66 अगिद्धे” अप्राप्त रसनी मांझाथी रहित રસાનુગત આકાંક્ષારૂપી તત્ત્તજાળથી અનાબદ્ધ મુક્ત તથા अगरहिए " माहीરના વિષયમાં કે દાતાના વિષયમાં ગો કરવાની ક્રિયાથી રહિત તથા अणज्झोववण्णे " रसनी मामतमां सोलुपता रहित मनीने आहार रखे। लेये. ते समये ते “ अणाइले ” मनाविस-उसे रहित भने" अलुद्धे । અણુबोलरहित थाने " अणतट्टिए અનાત્માર્થિક-કેવળ આત્મસ્વાર્થી ન ખને भाडार ४रती वमते ते " असुरसुर" "सुर सुर" शब्द न रे " अचवचनं"
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શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
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