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________________ सुदर्शिनीटीका अ० १ सू. ६ भावनास्वरूपनिरूपणम् 'पढम ' प्रथमम् ईर्यासमिति भावनामाह- ठाणगमणगुणजोगजुंजणजुगंतरनिवइयाए ' स्थानगमनगुणयोगयोजनयुगान्तर-निपातिकया-' ठाण' स्थानम् = उपवेशनमित्यर्थः, 'गमण' गमनं-चलनम् , तत्र गुणः त्रसस्थावरोपघातवर्जनरूपः, तस्य योगः सम्बन्धस्तं योजयति-करोति या सा स्थानगमनगुणयोगयोजना, तथा-युगान्तरे-युगप्रमाणभूभागे निपतति या सा युगान्तरनिपातिका, अनुकूल पड़नेवाली थोडी बहुत प्रवृत्तियां स्थूल दृष्टि से विशेष रूप में गिनाई गई हैं । जो भावना के नाम से प्रसिद्ध हैं। यदि इन भावनाओं के अनुसार बराबर बर्ताव किया जाय तो गृहीत व्रत उत्तम औषधि के समान प्रयत्नशील के लिये सुंदर परिणाम कारक सिद्ध होते हैं । यही बात “ परिरक्खणट्ठाए " इस पद द्वारा यहां ध्वनित की. गई है। इन पांच भावनाओं में जो (पढमं ) पहिली ई-समिति नामकी जो भावना है वह इस प्रकार है (ठाणगमणगुणजोगजुंजणजुंगंतर निवइयाए ) स्व पर को क्लेश न हो इस प्रकार यत्न पूर्वक गमन करना इसका नाम ईर्यासमिति है। इसी का विशेष खुलाशा सूत्रकार इसपद द्वारा कर रहे हैं-स्थान-बैठना और गमन-चलना इनमें जिसके द्वारा इस प्रकार को प्रवृत्ति होनी चाहिये कि जिससे त्रस और स्थावर जीवोंका उपघातक न हो, इस गुणरूप संबंध को जो जोड़ने ने वाली हो तथा जिससे युगप्रमाण भूमिभाग का अवलोकन हो रहा हो, अर्थात् चलते २ साधु अपने आगे की युगप्रमाण भूमि का આવનારી ડી ઘણી પ્રવૃત્તિ સ્થૂલ દૃષ્ટિથી વિશેષ રૂપે ગણાવવામાં આવેલ છે, જે ભાવનાને નામે પ્રસિદ્ધ છે. જે તે ભાવનાઓ પ્રમાણે બરાબર વર્તન કરાય તે ગ્રહણ કરાયેલ વ્રત પ્રયત્નશીલ વ્યક્તિને માટે ઉત્તમ ઔષધિ સમાન आय साध सिद्ध थाय छे. मे ४ वात “ परिरक्खणढाए” ५४ ६२। माडी विवाम गावी छ. पाय भावनामा “पढम" पी ईर्यासमिति नामनी रे मावना छे ते 21 प्रमाणे छ “ ठाणगमणजोगजुजण गंतरनिवइयाए” पोताने ५२ने प्रवेश न थाय ते प्रमाणे तन पूर्व गमन ४२j તેનું નામ ઈસમિતિ છે. તેનું વધારે સ્પષ્ટીકરણ સૂત્રકાર આ પદ દ્વારા કરે છે-સ્થાન-બેસવું અને ગમન-ચાલવાની ક્રિયામાં તેમના દ્વારા એ રીતની પ્રવૃત્તિ થવી જોઈએ કે જેથી ત્રસ અને સ્થાવર જીની હત્યા ન થાય, આ ગુણ રૂપ સંબધને જે જેડનારી હોય તથા જેથી યુગ પ્રમાણ ભૂમિભાગનું અવલેકન થતું હોય એટલે કે ચાલતી વખતે પિતાની આગળથી યુગ પ્રમાણ ભૂમિનું શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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