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________________ ५८६ प्रश्रव्याकरणसूत्रे पृष्टस्य चालगनेन ये शेरते ते लगण्डशायिनस्तैः, तथा - ' एगपासिगेहिं ' एकपाविकैः - एक एव पार्श्वे भूमौ शयनावस्थायां येषां ते एकपार्श्विकाः = एकपार्श्वशायिनस्तैः, :, तथा ' आयावएहिं ' आतापकैः = आतपन्ति ये ते आतापकाः = शीतोष्णाद्यातापनाकारिणस्तैः, तथा-' अत्राउडएहिं ' अमावृतैः = हेमन्ते प्रावरणरहितैरित्यर्थः, ' अणिहुए हिं' अनिष्ठीच कै: = मुख लेष्मणामपरिष्ठापकैरित्यर्थः तथा ' अकंड्यएहिं ' अकण्डूयकः गात्रकण्डूयनाका र कैरित्यर्यः, तथा-' धुयकेसमंसृलोमनहेहिं ' धृतकेशश्मश्रुलोमनखैः = धृताः - संस्कारापेक्षयात्यक्ताः केशाः श्रमभ्रूणि = ' दाढी ' इति प्रसिद्धानि = लोमानि = रोमाणि नखाः = यैस्ते तथोक्तास्तैः, संस्कार वर्जित केश मथुरोमनखधारिभिरित्यर्थः तथा-' सव्वगायपडिकम्मविप्पमु. केहिं ' सर्वगात्रप्रतिकर्मविप्रमुक्तैः = सर्वगात्राणां यत्प्रतिकर्म संस्कारस्तेन विमुक्तास्तैः =सर्वविधगात्रसंस्कारवर्जितैः, आभिनिवोधिकज्ञानिनमारभ्य सर्वगात्रप्रतिकर्मविप्रमुक्तैरनेक महा परुषैरियमहिंसा भगवती, 'समणुचिष्णा' समनुचीर्णा = आसेविता । " हैं, अनिष्ठीवक हैं, अकण्डूयक हैं, धूत के शश्मश्रुनखवाले (संस्कार र हित केश इमथुन खरो मवालेने) हैं, तथा सर्वपात्रप्रतिकर्म विमुक्त है ऐसे इन आभि निबधिक ज्ञानियों से लेकर सर्वगात्रप्रतिकर्म विमुक्त तक के अनेक महापुरुष के यह अहिंसा भगवती आसेवित हुई है। आमशैौषधि आदि का अर्थ इस कार है - तपश्चरण के प्रभाव से मुनिजनों को ऐसी लब्धि उत्पन्न हो जाती है जिससे उनके शरीर का स्पर्श ही समस्त रोगों का अपहारक हो जाता है । इस लब्धि के धारी जो मुनिजन होते हैं वे आमशैषिधि प्राप्त कहे जाते हैं । इसी तरह तपश्चरण से श्लो०मौषधिलब्धि प्राप्त होती है । इसी लब्धि में मुनिजनों का श्लेष्मा ही (कफ) औषधि का काम करता है। जल्ल नाम शरीर से उत्पन्न हुए मैल का है। जिनका मैल ही औषधि छे, अनिष्ठीव छे, अउ या छे, धृतशश्मश्रु नवाजा छे, तथा સર્વ ગાત્ર પ્રતિકમ વિમુક્ત છે, એવા તે આભિનિષેાધિક જ્ઞાનીએથી શરૂ કરીને સર્વાંગાત્ર પ્રતિકમ વિમુક્ત સુધીના અનેક મહાપુરુષા દ્વારા ભગવતી અહિંસાનુ સેવન थ्युं छे. " अमशैषिधि ” वगेरेना अर्थ नीचे प्रमाणे छे તપસ્યાના પ્રભાવથી મુનિજનાને એવી લબ્ધિ પ્રાપ્ત થાય છે કે જેના પ્રભાવથી તેઓના શરીરના સ્પર્શ જ સમસ્ત રાગોના નાશ કરે છે આ सम्धिवाणा ने भुनि होय छे तेभने " अमशैषिधि प्राप्त " भुनि उडेवाय छे. ये न प्रमाणे तपश्चर्याना प्रलावथी ' श्लेष्मौषधिलब्धि प्राप्त थाय छे. भा લબ્ધિથી મુનિજનેનું શ્લેષ્મા જ ઔષધિનું કામ કરે છે. શરીરમાંથી ઉત્પન્ન थयेस भेसने 'जल्ल' उडे छे, भेमनेो भेा न औषधिनी गरन सारे छे तेथे ,, શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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