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________________ ५३४ प्रश्नव्याकरणसूत्रे ' अन्नेसु एवमाइएसु ' बहूसुकारणसएमु ' अन्येसु एवमादिकेषु बहुषु कारणश तेषु-शिल्पादिभिन्नेषु परिग्रहोपादानशतेषु 'जावजीवं' यावज्जीवं ' नडिज्जए' निमज्जते-निमग्नी भवति । तथा 'संचिणंति मंदबुद्धी' संचिन्वन्ति मन्दबुद्धयः परिग्रहम् । तथा ' परिग्रहस्सेव य अट्ठाए करेंति ' परिग्रहस्यैव च अर्थाय कुर्वन्ति, 'पाणाणवहकरणं ' प्राणानां वधकरम्=परिग्रहं कर्तुं प्राणिनां वधं कुर्वन्तीत्यर्थः, तथा--'अलियनियडिसाइसंपओगे' अलीकनिकृतिसाति संप्रयोगान् , अधिकम्-असत्यम् , निकृतिः-मधुरवचनादिभिराश्वास्य वचनम् , सातिसंप्रयोगः-विगुणद्रव्येषु द्रव्यान्तर संयोज्य प्रशस्तगुणभ्रमोत्पादनम् , एतेषां द्वन्द्वः, तांस्तथोक्तान् , 'परदव्व अमिज्झं' परद्रव्याभिध्याम्-परद्रव्येषु परधनेषु अनेकविध प्रयोगों को भी (सिक्खए ) सीखते हैं। (अन्नेतु य एवमाइएसु) तथा इसी तरह के और भी इन शिल्पादिकों से भिन्न अनेक (बहुकारणसएसु) परिग्रह के सैंकड़ों कारणों में परिग्रह को अर्जन करने की लालसावाला प्राणी ( जावजीवं ) जीवन पर्यंत (नडिजए) मग्न होता रहता है। (संचिणंति मंदबुद्धी ) इसलिये इस कथन से यही निष्कर्ष निकलता है कि जो मंदबुद्धि होते हैं वे ही उत्कट परिग्रह का संचय करते हैं । तथा (परिग्गहस्सेव य अट्टाए पाणाणवहकरणं करेंति ) परिग्रह के निमित्त ही प्राणी प्राणियों के प्राणों को वध करते हैं तथा (अलियनियडि-साइ संपओगे ) इस परिग्रह को लक्ष्य करके ही वे (अलियं) असत्यभाषण करते हैं (नियडि) मधुर २ भाषणों से दूसरों को विश्वास दिलाकर फिर उन्हें ठगते हैं, (साइसंपओगे ) ओछी कीमत की वस्तु में बहमूल्यवाली वस्तु को मिलाकर उसे अधिक मूल्यवाली बनादिया “ विविहाओ जोगजुजणाओ" ||४२९४ मा भने विध प्रयोग पY शीमे " अन्नेसु य एवमाइएसु" तथा ते जामे सिवायना से प्रा२ना भीत भने “वहुकारणसएसु” परिहाना से४31 मा परिअडने प्रात ४२पानी सास व व जावजीवं" मान " नडिजए" टीन २९ छ. “संचिणंति मंदबुद्धी" तथा मा ४थनथी ४ इतित थाय छ तथा કે જે લેકે મંદજીદ્ધિવાળા હોય છે તેઓ જ ઉત્કટ પરિગ્રહને સંચય કરે છે. तथा “परिग्गहस्सेव य अदाए पाणाणवहकरणं करें ति" परिवहन निमित्त र आणी अथ। प्राणीमाना प्राणने। १५ ४२ छ, तथा “ अलिय-नियडि-साइ संपओगे" ॥ परिअडने सक्ष्य ४ीने तसा “ अलिय" असत्य माले छ. नियडि" भी भी क्यनाथी भीम पोताना प्रत्ये विश्वास मा. पान पाथी तेने जो छ. “ साइसंपओगे" माछी श्रीमतनी वस्तुनुं मारे श्रीमतनी वस्तु साथे मिश्रण परीने तेनो पधारे मा 641 छ, “परदव्व શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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