SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 569
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुदर्शिनी टीका अ० ५ सू० २ परिग्रहस्य त्रिंशन्नामनिरूपणम् ५११ संस्तवः परिचयः-परिचयकारणत्वात् २२, 'अगुत्ती' अगुप्तिः-तृष्णाया अगोपनम् २३, 'आयाओ' आयासः =दुःखम् , आयासहेतुत्वात्परिग्रहोऽ प्यायास:उक्तः २४, 'अविओगो' अवियोगः-धनादरपरित्यागः२५ 'अमुत्ती' अमुक्तिःअनिभिता २६, ' तण्हा ' तृष्णा-धनादेराकाङ्क्षा २७, 'अणत्थगो' अनर्थक:अनर्थकारणत्वात् २८, ' आसत्थी' आसक्तिः-मूर्छा, तत्कारणत्वात् २९, में लगा रहता है इसलिये इसका नाम प्रविस्तर है २० । परिग्रह अनेक अनर्थों का कारण रहता है इसलिये इसका नाम अनर्थ है २१ । परिग्रही जीवका अनेक जीवों के साथ संस्तवपरिचय रहता है। इसलिये परिचय का कारण होने से इसका नाम संस्तव है २२ । इसमें तृष्णा का गोपन नहीं होता है-अतः इसका नाम अगुप्ति है २३ । परिग्रह की ज्वाला में जलते हुए जीव को बहुत अधिक आयासों दुःखों को भोगना पड़ता है इसलिये उनका हेतु होने से परिग्रह का नाम भी आयास है २४ । परिग्रही जीव में लोभ की अधिक से अधिक मात्रा होने के कारण वह धनादिक का परित्याग दान आदि सत्कृत्यों में भी नहीं कर सकता है इसलिये इसका नाम अवियोग है २५ । इस परिग्रही जीव में निर्लोभता नहीं होती है इसलिये इसका नाम अमुक्ति है २६ । धनादिक के आगमन-आय की आकांक्षा परिग्रही जीव के सदाकाल रहती है इस लिये इसका नाम तृष्णा है २७ । परिग्रह अनेक अनर्थों का कारण है इसलिये इसका नाम अनर्थक है २८ । मूर्छा का कारण होने से इसका विस्ता२ ४२वामा ज्य! २३ छ, तथा तेनु नाम 'प्रविस्तार' छ. (२१) परिअड मने मनन ४।२६] मन छ, तेथी तेतुं नाम 'अनर्थ' छ. (२२) परिघडी पो मने अपनी साथे ' संस्तव' पश्यिय थ। २ छ, तेथी पश्यियनु ॥२६ पाथी तेनु नाम ' संस्तव ' छ. (२३) तेमां तृणानु मापन थतुं नथी, तेथी तेनु नाम ' अगुप्ति' छ. (२४) परियडनी ४ामi nau જીને ઘણું વધારે આયાસો-દુખે ભેગવવા પડે છે. તેથી તે આયાસના ४१२४१३५ डावाथी पश्यितुं नाम. ५ "आयास" छ. (२५) परिग्रही જીમાં લેભની માત્રા વધારેમાં વધારે હોવાને કારણે તેઓ દાન આદિ सत्कृत्यामा धनी परित्या ४३॥ २४ता नथी. तेथीतेनु नाम ‘अवियोग' छे. (२६) ते परिग्रही मा निमिता उती नथी, तेथी तेनुं नाम 'अमुक्ति, છે. (૨૭) ધનાદિ પદાર્થો મેળવવાની આકાંક્ષા પરિગ્રહી જીવને સદાકાળ રહે છે, तथी तेनु नाम 'तृष्णा' छ. (२८) परियड मने मनन माटे ४।२९५३५ डाय छे, तेथी तेनुं नाम — अनर्थक' छ. (२८) भूछा 'मासति' नु ४२५ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરાણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy