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________________ सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० ८ बलदेववासुदेवस्वरूपनिरूपणम् ४३३ महाछत्रैः 'धरिजंतेहिं ' धार्यमाणैः । विरायंता' विराजमानाः। ये एतादृशास्तेऽपि काम भोगातृप्ता एव मरणधर्ममुपनमन्तीति योगः ॥ मू० ७॥ पुनः कीदृशास्ते ? इत्याह- ' ताहिय ' इत्यादि मूलम्-ताहिय पवरगिरिकुहर-विहरण-समुद्धियाहिं निरुवहयचमरिपच्छिमसरीरसंजायाहिं अमइल-सियकमलविमुकुलज्जलियरययगिरि-सिहरविमलससिकिरण-सरिसकहोयनिम्मलाहिं पवणाहयचवलचलिय-सललियनच्चियवीइपसरिय-खीरोदगपवर-सागरुप्पूर-चवलाहिं माणससरपसर-परिचियावास-विसय-वसाहिं कणगगिरि-सिहर-संसियाहिं ओवाउप्पाय-चवल-जविय-सिग्घवेगाहिं हंसवधूयाहिं चेव नानामणिकणग-महरिह-तवणिज्जुज्जल-विचित्तदंडाहिं सललियाहिं नरवइसिरिसमुदयप्पगासणकराहिं वरपट्टणुग्गयाहिं समिद्धरायकुलसेवियाहिं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्क धूववासविसिहगंधुद्धयाभिरामाहिं चिल्लियाहिं उभओ पासंपि चामराहिं उक्खिप्पमाणाहिं सुहसीयलवायवीयियंगाअजिया अजियरहा हलमुसलकणगपाणी संखचक्कगयसत्तिणं दगधरा पवरुज्जलसुकय-विमलकोथुभ-किरीडघारी कुंडल उज्जोइयाणणा पुंडरीयणयणाएगावलिकंठ राइयवच्छा सिरिवच्छ सुलंछणा बरजसा सव्वोउय-सुरभि-कुसुमरइयपलंब-सोहंत माण छत्रों से ये विराजमान रहते हैं। ऐसे ये बलदेव और वासुदेव भी कामभोगों से अतृप्त बने रहते हैं और इसी स्थिति में मरणधर्म को प्राप्त करते हैं । सू०७ ।। શેભતા બળદેવ અને વાસુદેવ પણ કામગોથી અતૃપ્ત રહે છે એ સ્થિતિમાં भ२९ पामे छे. ॥ सू-७ ॥ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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