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सुदर्शिनी टीका अ०४ सू० २ अब्रह्मनामानि तल्लक्षणनिरूपणं च
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काम ? जानामि ते रूपं, सङ्कल्पात् किल जायसे ।
न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥१॥ 'बाहणा पदाणं ' बाधना पदानां=पदानां संयमस्थानानां बाधना वाधोत्पादकत्वात् ७ । 'दप्पो' दर्पः=दृप्तजनैराचरितत्वात् ८, मोहः मोहजननात्वेदमोहनीयकर्मोदयसम्पाद्यत्वाद्वा मोहस्वरूपः १, 'मणसंखोभो' मनः सङ्क्षोभः =चित्तव्याकुलतोत्पादकत्वात् १०, ' अणिग्गहो' अनिग्रहः विषयेषु प्रवर्त्तमानस्यनाम सेवनाधिकार है ५। संकल्प विकल्पों से यह उत्पन्न होता है इसलिये इसका नाम संकल्प है ६ । कहा भी है-- “ काम ! जानामि ते रूपं, संकल्पात् किल जायसे ।
न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥ १ ॥ हे काम ! मैं तेरे स्वरूपको जानता हूं, तू निश्चयतःमानसिक संकल्प से उद्भूत होता है । अतः में जब तेरा संकल्प ही नहीं करूँगा तो फिर तूं कैसे उत्पन्न होगा ? ॥
यह संयम के स्थानों में बाधा का उत्पादक होता है इसलिये इसका नाम पद बाधना है ७ । जो मनुष्य दृप्त-मदोन्मत्त होते हैं-उन्हीं के द्वारा यह आचरित किया जाता है अतः इसका नाम दर्प है। यह वेदरूप मोहनीय कर्म के उद्य से उद्भूत होता है इसलीये इसका नाम मोह है ९। इसके निमित्त से चित्त में एक प्रकार की व्याकुलता उत्पन्न होती है इसलिये इसका नाम मनःसंक्षोभ है १० । जिस समय इसका सारी छ, तेथी तेनुं नाम “ सेवनाधिकार" छ, '' स४८५ विपाथी ते उत्पन्न थाय छ, तेथी तेनु नाम “संकल्प " छ, ४थु ५५ छ
“ काम ! जानामि ते रूपं, संकल्पात् किल जायसे ।
न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥१॥" હે કામ! હું તારા સ્વરૂપને ઓળખું છું, તું અવશ્ય માનસિક સંકલ્પથી જ ઉત્પન્ન થાય છે, તે હું તારે સંક૯પ જ નહીં કરું તો તું ક્યાંથી उत्पन्न ५४श ? ॥२॥
(૭) તે સંયમનાં સ્થાનમાં મુશ્કેલીઓ પેદા કરનાર છે, તેથી તેનું નામ "पदबाधना" छ, '८' महोन्मत्त मनुष्य द्वारा १ ते सेवाय छ, तेथी तेतुं " दर्प" छे, ते ३६३५ माडनीय अभना यथी उत्पन्न थाय छ, तेथी तेनु नाम “मोह" छ, १०' तेने २णे चित्तमा म प्रा२नी व्याजता त्पन्न थाय छ तेथी तेनुं नाम “मनःसंक्षोभ” छे ११' न्यारे शरीरमा तेना
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર