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________________ प्रश्नव्याकरणसूत्रे 6 ' ' , सुखजनक', बहुदुक्खो ' बहूदुःखः=दुःखबहुलः 4 महभओ ' महाभयः =महाभयजनकः 'बहुरयप्पगाढो' बहुरजः प्रगाढः = प्रचुरकर्मरजोभिः सम्भृतः 'दारुणो' दारुणः = भीषणः ' ककसो ' कर्कशः = कठोरः " असाओ अशात:- असुखोऽशातकर्मवेदनीयस्वरूपः इत्येवंविधफलविपाकः 'वाससहस्सेहिं वर्षसहस्रैः =पल्योपमसागरप्रमाणकालै: 'मुच्चइ' मुच्यते = क्षीयते । तदेव व्यतिरेकमुखेनाह - 'नय' न च तं फल- विपाकम् ' अवेयइत्ता' अवेदयित्वा = अनुपभुज्य उपभोगं विनेत्यर्थः ' हु' निश्चयेन ' मोक्खो ' मोक्ष: 'अस्थि ' अस्ति ' त्ति ' इति शब्दः समाप्ति सूचकः । एतस्यार्थस्य ' एवमाहं ' इत्यादि । " साक्षात्प्रमाणभूत परमात्मप्रतिपादितत्वेन प्रमाणयन्नाह - एवम् = उक्तरीत्या ' आहंसु ' ऊचुः ऋषभादि तीर्थङ्करगणधरादय । तथा केवल आपातमात्र सुख जनक है । ( बहु दुक्खो ) जीवों के इससे वास्तविक सुख नहीं मिलता है किन्तु भयंकर से भयंकर दुःखो का ही यह प्रदाता है । ( बहुभओ ) यह महा भयजनक है ( बहुरयप्पगाढ़ो) प्रचुर कर्म रूपी रज से यह भरा हुआ है । ( दारुणो ) बड़ा भीषण है । (कक्कसो) कठोर है । ( असाओ ) अशात कर्म वेदनीय स्वरूप है । इस तरह का यह फलविपाक ( वास सहस्सेहिं ) हजारों वर्षो में अर्थात् पल्योपम तथा सागरोपर प्रमाणकाल में ( मुच्चर ) छूटता है | ( न य अवेयइत्ता हु माक्खो अस्थि त्ति ) विना इसका फल भोगे जीव इससे मुक्त नहीं होता है । इस अर्थ में प्रमाणता प्रतिपादन करने के लिये सूत्रकारइसमें साक्षात्प्रमाणभूतपरमात्म के द्वारा प्रतिपादितता प्रकट करते है, वे कहते हैं- ( एवमाहंसु ) ऋषभ आदि ३८८ 6 ते इस३५ विषा " अप्पसुहो " देवण क्षणिक सुखन्न छे. " बहुदुक्खो " વેને તેનાથી વાસ્તવિક સુખ મળતું નથી, પણ તે ભયકરમાં ભય કર हेनार छे. " बहुब्भओ” ते महा लयन छे " बहुरयप्पगाढो ” वियुस उर्म३यी २४थी ते पूर्ण छे, " दारुणो " धो भीषण छे, " कक्कसो" और छे, "असाओ,, अशात भवेदृनीय स्व३५ छे. आ अारनो या इजविया “ बाससहस्सेहिं ” इन्नरो वर्षे भेटते है पस्योपभ तथा सागरोयम प्रभार अणे छूटे छे. " नय अवेयइत्ताँ हु मोक्खो अस्थि ति " तेनुं इज लोगव्या વિના જીવ તેનાથી મુક્ત થતાં નથી. તે અમાં પ્રમાણ ભૂતના પ્રતિપાદિત કરવાને માટે સૂત્રકાર તેમાં સાક્ષાત્ પ્રમાણભૂત પરમાત્મા દ્વારા પ્રતિપાદિતતા પ્રગટ કરે છે. તેઓ કહે છે શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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