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________________ सुदर्शिनी टीका अ०३ सू० १८ अदत्तादायिनः परलोकगतिनिरूपणम् ३५९ त्तणेममूले' नरकवर्तनीः-नरकमार्गभूतानि भवप्रपञ्चकरणप्रणोदीनिम्भवप्रपञ्चस्य जन्मपरम्पराप्रवाहस्य करणं भवनं तस्य प्रणोदीनि = प्रवर्तकानि नरकगमनकारणानीत्यर्थः, तथा पुनरपि-पुनश्च संसारावर्त नेमिमूलानि-तत्र संसारवर्त्त संसारभ्रमणे नेमिमूलानि रथचक्रपरिधिरूपाणि कर्माणीति गम्यते ' निबंधति' निवघ्नन्ति चतुर्गतिसंसारपरिभ्रमणकारणानि महारम्भमहापरिग्रहरूपाणि कुर्वन्तीत्यर्थः । तथा 'धम्मसुइवज्जिया ' धर्मश्रुतिवर्जिताः = धर्मः = श्रुतचारित्रलक्षणस्तस्य श्रुतिः= श्रवणं तद वर्जिताः 'अणज्जा' अन्याय्याः न्यायवर्जिताः 'कूरा' क्रराः जीवोषघातकाः 'मिम्छत्त सुइपवण्णा य' मिथ्यास श्रुति प्रपन्नाच-मिथ्यात्वश्रुति-मिथ्यात्वप्रधाना "न प्राणिवधे दोषा नाप्यदत्तादाने दोषाः" इत्यादिरूप विपरीततत्त्वोपदेशिका या श्रुतिः= सिद्धान्तस्तां प्रपन्नाः तदङ्गीकारकाः ' हुति' भवन्ति । तथा एगंतदंडरुइणो' एकान्तदण्डरुचयः = एकान्तम् अत्यन्तं दण्डे-हिंसादिके रुचिः = श्रद्धा येषां ते तथा केवलं परसन्तापोत्पादनपराप्रवर्तक, तथा (पुणोवि संसारावत्तणेममूले) बार वार चतुर्गतिरूप संसार में परिभ्रमण के नेमिभूत-रथचक्र के परिधिरूप ऐसे कर्मों का ही (निबं. धंति ) बंध करते रहते हैं। अर्थात्-नरक, तिर्यच, मनुष्य गतिरूप संसार में परिभ्रमण के कारणभूत ऐसे महारम्भ, महापरिग्रह रूप कर्मों को करते रहते हैं। तथा (धम्मसुइवज्जिया) धर्मश्रुति से-श्रुतचारित्ररूप धर्म के श्रवण से वर्जित रहते हैं। (अणज्जा ) न्यायमार्ग से हीन होते हैं। (कूरा) क्रूर-स्वभाव के-जीवों का उपघात करने वाले होते हैं । (य) और (मिच्छत्त मुइपवण्ण ) " न प्राणिवध में दोष है और न अदत्ता. दान में दोष है " इत्यादि प्रकार से विपरीत तत्त्वोपदेशक मिथ्यात्वप्रधान श्रुति को-सिद्धांतकों अंगीकार करने वाले (हुति ) होते हैं। तथा (एगंतदंड-रुइणो) इनकी श्रद्धा हिंसादिक पापकार्यों में ही अत्यंत रूपमें " पुणोवि संसोरावत्तणेममूले" पावार याति३५ संसारमा परिश्रमाना नभिभूत-२थयन। पश्ििध३५ mai नी । “ निबंधति ” ५५ मांधता રહે છે, એટલે કે નરક; તિર્યંચ, મનુષ્યગતિરૂપ સંસારમાં પરિભ્રમણના કાર४३५ महान, महापरि३५ ४ ४ ४२ छे. तथा “धम्म सुइवज्जिया" श्रत्यारित्र३५ भनी श्रवाथी २डित २३ छ,' अणज्जा" न्याय माथी २डित डाय छ, "कूरा" २ स्वभावना-वानी डिसा ४२ता हाय छ. “य" तथा "मिच्छत्त सुइपवण्ण " " प्राणियमा होष नथी मने मह. ત્તાદાનમાં દેષ નથી ” ઇત્યાદિ પ્રકારના વિપરીત તપદેશક મિથ્યાત્વ પ્રધાન सिद्धांताने २वी४।२।२ "हुति" डाय छ, तथा “एगंतदंडरुइणो” हिसा શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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