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________________ ३४८ प्रश्रव्याकरणसूत्रे नानि-हस्तद्ववपादद्वयरूपाणि 'धणियं ' अत्यर्थ बद्धानि येषां ते तथा दृढ़बद्धहस्तपादार, 'पव्वयकडगापमुच्चंते ' पर्वतकटकात् प्रमुच्यन्ते-गिरिशिखरान्निपात्यन्तेऽत एव 'दूरपातबहुविसमपत्थरसहा' दूरपातबहुविषमप्रस्तरसहाः = बहुविपमेषु= अत्यन्तविष मेषु निम्नोन्नतेषु मस्तरेषु पाषाणेषु यो दूरात् पातः निपतनं त सहन्ते ये ते तथा भवन्ति । ' अण्णेय ' अन्ये च गयचलणमलणनिम्मदिया कीरति ' गजचरणमलननिर्मर्दिताः, तत्र – गजचरणेन हस्तिपादेन यन्मलनं= मर्दनं तेन निर्मर्दिताः सम्मर्दितशरीराः क्रियन्ते । तथा ' पावकारी' पापकारिणः फिर वे अदत्तग्राही चोर जिस फल को पाते हैं-' केइ ' इत्यादि । टीकार्थ-(केइ) कितनेक अदत्तग्राही मनुष्य ( कलुणाइ विलवमाणा) महाकष्टोको भोगनेके कारण करुणवचनों से विलाप करते हुए (रुक्खसालेहिं ) वृक्षोंकी शाखाओं में (उल्लं बिजंति) रस्सी आदि से बांधकर लटका दिये जाते हैं । तथा ( अवरे) कितनेक अदत्तग्राही मनुष्य (चउरंग वणियबद्धा) दोनों हाथ पैर खूब जकड़ कर बांधकर (पव्वयकडगा) पर्वत की चोटी से ( पमुच्चंते) गिरा दिये जाते हैं, अतः वे (दूरपातवि. समपत्थरसहा) वहां से गिर कर नीचे ऊँचे पत्थरों पर बहुत दूरतक गुडकते आने के कारण शरीर में बहुत बुरी तरह छुल जाते हैं। इस तरह वे महाभयंकर वेदना को सहन करते हैं । ( अण्णे य) कितनेक अदत्तग्राही चोर ( गयचलणमलणनिमदिया) हाथी के पैरों के तले डाल कर मर्दित (कीरंति) करवाये जाते हैं । इस तरह उनके शरीर તે અદત્તાગ્રાહી ચેર જે ફળ પામે છે તેનું વધું વર્ણન કરે છે– " केइ" त्या Nथ-- “केइ" मा महत्तोपाडी भासाने "कलुणाइविलवमाणा" भडा. ४टी लागवाने १२णे ४२६५ वयनाथ. विसा५ ४२ता “ रुक्खसालेहिं " वृक्षोनी जी। ५२ “ उल्लं बिज्जंति" हो२७! माहिथा धान atी वामा भावे छ. तथा “ अवरे" ॐा महत्तयाही भासान. “चउरंगधणियबद्धा" भन्ने हाथ पाने भभूत मांधान “पव्वकडगा" ५ तनी टायथा “पमुच्चंते" नीय सेसी वामां मावे छ, तेथी “ दूरपातविसमपत्थरसहा ” त्यांथी या નીચા પથ્થર ગબડાવાને કારણે તેમના શરીર ખરાબ રીતે છોલાઈ જાય છે भने ते शते ते सो मति भय४२ वेहना साउन ४२ छ. तथा “ अण्णेय " टमा महत्तग्राही याराने “गयचलणमलणनिमहिया" थाना ५० नाये नाभान " की ति" यावामा माव छ. मेरीत हाथीन ५५ नाय ज्य શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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