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________________ ३४२ प्रश्रव्याकरणसूत्रे इति भाषा प्रसिद्धस्तेन वाद्यमानेन सह राजपुरुषै नियमानाः सन्तो घट्टिताः = वेष्ट्यादिभिस्ताडिताः मार्यमाणा इत्यर्थः, 'कूडग्गहगाढरूडनिसिद्धपरामट्ठा ' कूटग्रहगाढरुष्ट निसृष्टपरामृष्टाः = तत्र कूटग्रहत्वात् = कूटेन = छलप्रपञ्चन चौरस्य परधनग्राहित्वाद् गाढरुष्टे:- अतिक्रुद्धैः राजपुरुषैः निसृष्टा := अपहृतधनाः, निर्धना इत्यर्थः पुनः परामृष्टाश्च = गृहीता ये ते तथा 'वज्झकर कुडिजुय निवसिया' बध्य करकुटी युगनिवसिताः वध्यानां यत् करकुटीयुगं = निन्द्यवस्त्र विशेषद्वयं तन्निवसितं = परिधापितं येषां ते तथा वध्यवस्त्रधारिण इत्यर्थः, ' सुरतकणवीरगहियविमुकुलकंठे गुणलज्झदूय आविद्धमलदामा सुरक्तकणवीरग्रथितविमुकुलकण्ठे " = रहता है और जब जिसका शूलारोपण का होता है तब वह बजता है अतः शूलारोपण आदि संकेत का सूचक होने से वह खरपरुष - अत्यंत कठोर माना गया है, जैसे ही वह बजाता है कि राजपुरुष उस वध्य व्यक्ति को साथ में लेकर चल देतें हैं । और रास्ते में वे उनचोरों को वेत्र - यष्ट्यादि से ताडित भी करते जाते हैं । ( कूडग्गहगाढ रुट्ठनिसिङ परामट्ठा) ये राजपुरुष उन चोरों पर ( कूडग्गह ) छलप्रपंच से परधन को अपहरण करने के कारण ( गाढरुड) अत्यंत रुष्ट हो जाते हैं, और इसीसे ( निसिह ) अपहृत द्रव्य को छीन भी लेते है, और बाद में उन्हें (परामट्ठा) पकड़ लेते हैं ( वज्झकर कुडि जुयनिवसिया ) जब वे शूली पर उन्हें चढाने के लिये ले जाते हैं तो इसके पहिले उन्हें वे वध्यपुरुषों को ( वज्झकरकुडिय) पहिराने के योग्य निद्य दो वस्त्र ( निवसिया ) पहिरा देते हैं (सुरतकणवीरगहिय विमुकुल कंठे गुणवज्झ दूध आविद्ध આદિથી ચોરા પર જ્યારે કાઈને શૂળી પર ચડાવવાના સમય થાય છે ત્યારે તે વગાડવામાં આવે છે. તેથી શૂલારાપણુ આદિ સંકેત દર્શાવનાર હાવાથી તેને વરષ અત્યંત કઠાર કહેલ છે. જેવો તે ઢોલ વાગે છે, કે તે રાજપુરુષા તે વષ્ય વ્યક્તિને લઈને ઉપડે છે, અને રસ્તામાં તે લોકે તે ચોરાને સેાટી, લાકડી ईटारे छे. " कूडा गाढ रुनिसिपरामट्ठा " તે રાજપુરુષ તે 66 'कूडग्गह ” છળકપટથી પરધનનું હરણ કરવાને લીધે “ डोघे लराय छे, अने तेमनी पासेथी ते बोओ " निसिद्ध " थोरेसां द्रव्यने છીનવી પણુ લે છે. અને પછી તેમને “ परामट्ठा " पड्डी से छे. “ वज्झकरकुडिजुनिवसिया જ્યારે તેઓ તેમને શૂળીએ ચડાવવા લઇ જાય છે ત્યારે વધ્ય પુરુષાને પહેરાવવા वझकरकुडिजय " લાયક, એ નિદ્ય વસ્ત્રો " निवसिया” तेभने पहेरावे छे सुरतकणवीरगहियविमुकुलकंठे गुणव• "" गाढरुट्ठ અત્યંત " 66 શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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