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________________ ३३२ प्रश्रव्याकरणसूत्रे पकाः परधनचौर्येण तुष्यन्ति ये ते तथा राजपुरुषैः 'गहियाय ' गृहीताश्च ये नरगणाः चौरजनसमूहाः पूर्व कोट्टपालादिभिः प्राप्तदण्डाः 'पुणरवि ते ' पुनरपि ते ' कम्मदुन्चियट्टा' कर्मदुर्विदग्धाः अदत्तादानादिकमजनितकटुकफलज्ञानरहिताः चौर्यकर्माऽपराधेन ' तेसिं रायकिंकराणं' तेषां प्रसिद्धानां निर्दयानां राजकिंकराणां राजपुरुषाणामग्रे ‘उवणीया' उपनीता= समीपं प्रापिताः कथं भूतानां राजकिकराणामित्याह ' वधसत्थगपाढयाणं ' वधशास्त्रकपाठकानां वधबन्धमारणघातनमात्रशिक्षाशिक्षितानां 'विलउलीकारगाणं' विलउली हीनदीनादिवचनै औरादीनां निर्णयः देशी शब्दोऽयं, तत् कारकाणां 'लंचसयगेण्हयाणं ' लश्चशतदुःखी होते रहते हैं । (धणतोसणा ) यदि इन्हें संतोष प्राप्त होता है तो वह एक परके धनके अपहरण करनेसे ही होता है। परन्तु यह संतोष इनका स्थायी नहीं रहता है कारण जब (जेनरगणा ) ये अदत्तग्राही चौर लोक ( गहिया य ) राजपुरुषों द्वारा गृहीत पकड़ लिये जाते हैं, तब (पुणरवि ते ) फिर भी वे विविध प्रकार के दंडों से इन्हें विशेष दुःख भोगना पड़ता है । तथा ( कम्मदुव्वियड्डा ) अदत्तादानादि कर्मजनित कटुक फलके ज्ञानसे रहित बने हुए चौर्यकर्मरूप अपराधके कारण (तेसिं) उन (रायकिंकराणं) निर्दय राजपुरुषों के आगे जब (उवणीया ) ले जाये जाते हैं तब वे इन्हें प्राणदंड की आज्ञा देते हैं, तथा और भी इनके साथ क्या २ व्यवहार करते हैं यह बात सूत्रकार स्पष्ट नीचे के अवतरणों द्वारा करते हैं-राजपुरुष कैसे होते हैं ? पहले यह बात सूत्रकार कहते हैं-(वधसत्थगपाढयाणं) वध, बंध, मारण, घातन, ताने ४२णे तव शतहिन भी थया रे छ. "धण तोसणा "तने ५२५નનું અપહરણ કરવા સિવાય બીજા કોઈ કાર્યથી સંતોષ થતો નથી, પણ तेन ते संतोष स्थायी डानथी ४१२५ के न्यारे "ते नरगणा” ते 48तयाही योरे। “गहियाय" पुरुषो द्वारा ५४15 तय छ त्यारे " पुणरवि ते" शथी ५ तेमने अने: प्रा२नी शिक्षा २१ वधारे लोगवा ५ छ, तथा “कम्म दुब्वियद्रा" महत्ताहीन महिना परिणाम ज्ञानथी अज्ञानथी सेवा त योशेने, योशन शुनाने २ “ तेसिं" ते "रायकिंकराणं" निय २२४ पुरुषो पासे न्यारे "उवणीया" A वाम मावे छ ત્યારે તેમને મૃત્યુદંડની સજા થાય છે, તથા તેમની સાથે બીજા પણ કે વર્તાવ રાખવામાં આવે છે, તે વાતને સૂત્રકાર નીચેનાં, વાક્યો દ્વારા સ્પષ્ટ કરે છે-પહેલાં તે રાજપુરુષે કેવા હોય છે, તે વાત સૂત્રકાર બતાવે છે. " वधसत्थगपाढयाणं” १५, मध, भा२९], यातन, माहि विद्यामाना શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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