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________________ ३२४ प्रश्रव्याकरणसूत्रे कीलकाः 'खूटा' इति प्रसिद्धाः 'जूव' यूपाः स्तम्भविशेषाः 'चक्क' चक्राणि रथाङ्गानि 'पहिया' इति भाषा प्रसिद्धानि तेषु विततबन्धनं बाहुजङ्घादिविधाटनेन नियन्त्रण तथा 'खंभालण' स्तम्भालगनं-स्तम्भैः-सह रज्ज्वादिभिरावेष्टनं गले रज्जु बद्ध्वा स्तम्भेषु समालम्बनं वा तथा 'उद्धचलणबंधण' ऊर्ध्वचरणबन्धनं चम्पादयोरुपरिकृत्य बन्धनमित्यादिर्या 'विहम्मणाहिं ' विधर्षणा-पीडास्ताभिः 'विहेडियंता' विहेड्यमानाः पीड्यमानाः संकोटिता मोटिताः क्रियन्त इत्यग्रेण सम्बन्धः। तथा--' अहकोडगगाढउरसिरबद्ध उद्धपूरियफुरंतउरकंडगमोडणेहिं ' अधः कोटकगाढोरः शिरोबद्धोर्ध्वपूरितस्फुरदुर काण्डकमोटनैः, तत्र--अधः कोटकेन अधो नमयनेन गाढम् प्रत्यर्थमुरसि-वक्षःस्थले शिरः-मस्तकं बद्धं येषां ते तथा अतएव ऊर्ध्वपूरिताः श्वासप्रश्वासैः पूरितशरीरोर्वभागास्तथा स्फुरदुरः कण्डकाश्च-कम्पमानवक्षःस्थलपृष्ठास्थिका ये चौरास्तेषां यानि मोटनानि-पुनः पुनहथकडी आदि में बांध दिये जाते हैं, खूटों पर लटका दिये जाते हैं, (जूव) स्तंभविशेषों से जकड़ कर बांध दिये जाते हैं, (चक्क) पहियों से (विततबंधण) हाथ पैर बाहर निकालकर रस्सियों से बहुत बुरी रतह से जकड़ दिये जाते हैं, (खंभालण) बड़े २ खंभों के ऊपर गले में रज्जु आदि बांधकर लटका दिये जाते है । तथा (उद्धचलणबंधण) पैरों में रस्सी आदि से बांधकर मुँह नीचा करके वृक्षादिकों में लटका दिये जाते हैं । ( विहम्मणाहिंय ) इस प्रकार की-विविध प्रकार की पीडाओं से वे (विहेडियंता) पीडित किये जाते हैं। तथा (अहकोडगाढ उरसिरबद्ध उद्धपूरियफुरंतउरकंडगमोडणेहिं ) ( अहकोडगगाढउरसिरबद्धपूरिय ) इनका मस्तक इतने अधिक रूप में नीचे झुकाया जाता है कि जिससे वह वक्षस्थल पर आकर चिपक जाता है, और इसी कारण श्वास उच्छ्रवासों से इनका शरीर का उर्ध्वभाग पूरित होता रहता है, (फुरंतउर माह 43 सांधवामा मावे छ, भूट ५२ सामi मावे छ, “ जूव" स्थानी साथे मांधवामा माघे छ," चक्क" योथी १४ामा मावे छे. “ विततबंधण" हाय ५ हो२i व प ५२५ रीते सांधवामi भाव छ. " : खंभालण" मोटा मोटा थांबवासी ५२ गणे होi मांधीन सटामो मावे छ, तथा “उद्धचलणबधण" पणे हो२i माधान वृक्षा ७५२ राधे माथे टqाम मावे छ, “ विहम्मणाहिय" २॥ प्रारनी विविध यातनायाथी भने “विहोडियंता" पीडामा मावे छे. तथा “ अहकोडगगाढउरसिरबद्धपूरिय" तमनट भरत ने मेटयु मधु नीय નમાવવામાં આવે છે કે જેથી તે છાતી ઉપર ચોંટી જાય છે, અને તે કારણે श्वासोच्छ्वासथी तमनां शरीर Bा पूर्ण २९ छ, “फुरतउरकंडग" શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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