________________
२९२
प्रश्रव्याकरणसूत्रे भूमिकहमचिक्खिल्लपहे ' अपविद्धनिसुट्टभिन्नफालितप्रगलितरुधिरकृतभूमिकर्दमचि. क्खिल्लपथे तत्र अपविद्धाः बाणादिभिः, निसुट्टा-निपातिताःगलहस्तादिभिः, भिन्नाः त्रिशूलादिभिः फलिताः स्फाटिताः विदारिताश्च कुठारादिभिर्ये, तेभ्यः प्रगलितेन =क्षरितेन रुधिरेण कृतः जातो यो भूमौ पृथिव्यां कर्दमस्तेन चिलिचिल्ला: आर्द्राः पन्थानः = मार्गाः यत्र स तथा तत्र, 'कुच्छिदालियगलियनिम्मेलियंतफुरफुरंतविगलमम्महयविगयगाढदिण्णप्पहारमुच्छियरुलंतविन्भलविलावकलणे ' कुक्षिदारितगलितनिब्र्भेलितान्त्रफुरफुरायमाणविगलमर्महतविकृतगाढदत्तपहारमूञ्छितलुठविह्वलविलापकरुणे-दारितात्-विदारितात् कुक्षेः उदरात् गलितं रुधिरं निन् लितानि = उदराबहिनिगलितानि च अत्राणि = 'आँतडियाँ ' इति भाषा प्रसिद्धानि येषां ते तथा, अतएव-फुरफुरायमाणाः = कम्पमाना: विकला:-निरुद्धेन्द्रियवृत्तित्वेन व्याकुलाः, मर्महताः कण्ठादिमर्मस्थाने हतास्तथा
ओंके हाथों को काट दिया करते हैं तथा ( अवइद्ध ) बाणों से वेधे गये, (निसुट्ट) गले में हाथ डालकर हठात् जमीन पर पटक दिये गये, (भिन्न) त्रिशूल आदि के द्वारा भेदे गये एवं ( फालिय) कुठार आदि द्वारा फाड दिये गये-विदारित किये गये ऐसे योद्धाओं के शरीर से (पगलिय ) झरते हुए ( रुहिर ) रक्तसे ( कयभूमिकद्दमचिखिल्लपहे) जहां की भूमिमें कीचड मच रही है और इसी से जहांके मार्ग चिकने हो रहे हैं तथा (कुच्छिदालिय)विदारित हुए उदरसे जिनके (गलिय) खून बहरहा है और (निम्मेलियत) आंतें भी जिनकी पेटसे बाहिर निकलआई हैं, इसी कारण जो ( फुरफुरंत ) कंप रहे हैं और (विगल ) चिकल हो रहे हैं ऐसे योधा कि जिन पर ( मम्मयविगयगाढदिण्णप्पहार ) क्रोध के आवेश
योद्धामा ४ मीना साथ छेही ना छ, तथा "अवइद्ध" माथी पीधायेक्षा "निसुदृ" गजाम हाथ लशवीने पूर्व भीन ५२ ५८सयस, "भिन्न" त्रिशण माहिदास हायेसामने “फालिय" ५२सी माहिद्वारा यारी नामेस, योद्वामाना शरीरमा “पगलिय” पडता “रुहिर" सोडीया "कयभूभिकदमचिखिल्लपहे" यां જમીનમાં કીચડ થઈ ગયો છે, અને તે કારણે જ્યાં માર્ગ લપસણું થઈ ગયા છે, તથા "कुच्छिदालिय” भन विहारित थयेai S४२माथी “गलिय" ही 40 २ऱ्या छ भने " निम्मेलियते " मन त२i ५५ पेटमाथी मा२ नीजी ५७यां छ. से १ ॥२॥णे २ " फुरफुरत" पी २॥ छ, मन “विगल" व्याण २४ या छ, रेमना ५२ “ मम्मयविगयगाढदिण्णप्पहार ” ओपना आवेशमा
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર