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________________ सुदर्शिनी टीका अ० ३ ० ७ सङ्ग्रामवर्णनम् २९१ 'गयवरपत्थंत' गजवरमार्थयमानाः = गजवरान्-शत्रुकुञ्जरान् हन्तुमारोढुं वा मार्थयमानाः अभिलषमाणा ये ते तथा 'दरियखलभड' दृप्तखल भटाः दृप्ताः स्ववलगर्विताः, खला: दुष्टाः-भटाः=योधास्ते, तथा 'परोप्परपलग्ग' परस्पर प्रलग्नाः परस्परं शत्रुमभिहन्तुं प्रवृत्ताः 'जुद्धगविय' युद्धगर्विताश्च युद्धकौशलाऽहङ्कारपूर्णाः, — विकोसियवरासि' विकोशितवरासयः-विकोशिताः कोशानिष्कासिताः असया खगाः यैस्ते तथा, ' रोस' रोषेण क्रोधेन ' तुरिय' त्वरित शीघ्रम् , ' अभिमुह ' अभिमुखं 'पहरंत' प्रहरन्तस्ते छिन्नकरिकराः-छिन्नाः करिकराः हस्तिशुण्डाः यैस्ते तथा, वियंगियकरे' व्यङ्गिताः विकर्तिताः कराः येषां ते तथा, एते विद्यन्ते यस्मिन् स तथा तस्मिन्-परस्पराभिहननभेदनछेदनपहरण तत्परैर्योधैश्छिन्नभिन्नैः-' हयगजरथपदातीनां परिभ्रष्टशुण्डमुण्डहस्तपादादिभिः यासं स्थलं यत्रैवं भूते संग्रामे इत्यर्थः। अवइद्धनिसुट्टभिन्नफालियपलियरुहिरकयएक योधा दूसरे योधा के हाथीको मारने के लिये अथवा उस पर सवार होनेके लिये उत्सुक रहता है, तथा जिसमें (दरियखल भड) दुष्ट योधा गण अपने बल से अधिक गर्वित बने रहते हैं, (परोप्परपलग्ग) एक दूसरों को मारने के लिये जहां वीर प्रयत्नशील रहते है, अथवा प्रवृत्त होते हैं, (जुद्धगव्विय ) युद्ध करने का कौशल योद्धाओं में विशेषरूप से जगकर उन्हें जहां गर्वित बना दिया है, तथा ( विकोसियवरासि ) जहां पर योद्धा अपनी २ श्रेष्ठ तलवारों को म्यान से बाहिर किये हुए ही रहते हैं, और जहां (रोसतुरियअभिमुहपहरंतछिण्णकरिकर ) क्रोध से भरकर एक योधा दूसरे योधाके ऊपर प्रहार कर उसके हाथी के शुण्डादण्ड को भग्न कर देता है, तथा (वियंगियकरे ) परस्परमें जहां योद्धायोद्धारपत्थत" भा मे योद्धो मानत योद्धाना साथीने भारी नावाने भाटे, अथवा तेन। ५२ सवार थवाने भाटे मातु२ २ छ, तथा मा “ दरियखलभड" दुष्ट योद्धा पोताना ने दीधे पधारे भविष्ट अनेसा २ छ, " परोपरपलग्ग” न्यो मे मीने भावाने भाट पी२ पुरुषो प्रयत्नशील २ छ, अथवा प्रवृत्त डाय छ, "जुद्धगव्विय" या योद्धान्मान युद्ध औशक्ष्य વધારે પ્રમાણમાં જાગૃત થયું છે, અને તે કારણે તેઓ વધારે ગવિષ્ટ બન્યા छ, तथा “ विक्कोसियवरासि" या योद्धा पोत पाताथी श्रेष्ठ तावाशने भ्यानमाथी १६०२ अढी पाने तैया२ डाय छ, भने न्यो “रोसतुरिय अभिमुहपहरंतछिण्णकरिकर ” ओधायमान थाने मे योद्धो भी योद्धाना S५२ प्रडा२ रीने तेना हाथीनी सूटने पी नामेछ, तथा "वियंगियकरे यां શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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