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________________ २६२ प्रश्नव्याकरणसूत्रे रक्खियं ' राजपुरुषरक्षितं-राजपुरुषैनिषिद्धं, 'सया साहुगरहणिज्ज' सदा साधु गर्हणीयं-निरन्तरं महापुरुषैनिदितं 'पियजणमित्तजणभेयविप्पीइकारगं' प्रियजनमित्रजनभेदविपीतिकारकं-प्रियजनानां==बान्धवानां मित्रजनानां च भेदः वियोगः विप्रीतिः द्वेषस्तत्कारकं 'रागदोसबहुलं ' रागद्वेषबहुलं स्पष्टम् । 'पुणो य' पुनश्च । उप्पूरसमरसंगामडमरकलिकलहवहकरण' उत्पूरसमरसंग्रामडमरकलिकलहवधकरणम्-तत्रोत्पूरः प्रचुरो यः समरः = मरेण मृत्युना सहितः समर एतादृशः संग्रामः=युद्धं डमरः-स्वचक्रपरचक्रभयलक्षणः कलि: स्वपक्षराटिः कलहश्च वाग्युद्धं वधा-ताडनमेतेषां करणं कारकं यत्तत्तथा 'दुग्गइविकिया गया है । (सया साहुगरहणिज्जं ) तथा महा पुरुषों द्वारा सदा निन्दित प्रकट किया गया है। (पियजणमित्तजणभेयविप्पीइकारगं) इस कृत्य को करने वाले पुरुषों को अपने बंधव जनों का तथा मित्रजनों का वियोग हो जाता है, अर्थात् उनकी अप्रीति का भाजन बन जाता है। (रागदोसबहुलं) रागद्वेषकी मात्रा इसमें सबसे अधिक रहती है। (पुणोय) यह फिर ( उप्पूरसमरसंगाम ) मृत्युसहित संग्राम का कारक है, अर्थात् धन आदि हरण करने के लिए जब चोर किसी के यहां जाता है तब वह डटकर इसका साम्हना करता है तो ऐसी स्थिति में चोर की मृत्यु भी हो जाती है । (डमर ) इसमें सदा स्वचक्र और परचक्रका चोरों को भय रहा करता है ( कलि ) कभी २ अपने ही पक्ष के लोगों के साथ तकरार भी हो जाती है । ( कलह ) वाग्युद्ध आपस में कहा सुनी हो जाती है। ( वह ) वध-मार पीट हो जाती है। (दुग्गइविणिवायवपुरिसरक्खिय” २४ पुरुषो १२१ तेन निषेध ४२।येस छे. “सया साहगरहणिज्ज" तथा साधु पुरुषो द्वारा महापुरुषो द्वारा ते सहा निं गायेस छे. " पियजणमित्तजणभेयविप्पीइकारगं " २मा कृत्य ४२ना२ पुरुषोने पाताना અંધજનેનો તથા મિત્રજનોનો વિયોગ થાય છે, એટલે કે તેમની અપ્રીતિન पात्र मन ५ छे. “रागदोसबहुलं" तेभा रागद्वेषतुं प्रमाण सौथी वधारे डाय छ. "पुणो य" qणी ते "उप्पूरसमरसंगाम" मृत्यु सहित सामर्नु ४।२४ छ-मेटले જ્યારે ધન આદિ ચોરવાને માટે ચોર કોઈને ઘેર જાય છે અને તે ઘર વાળ तेना भभूत सामनी ४२ ते! या२नु भात थाय छे. “डमर' तेमा सहा स्वय भने ५२यनी यारी ४२ना२ने भय २ह्या ४२ छ, “ कलि” । पा२ पोताना ४ पक्षन। भाणुसे। साथे त४२१२ ५५] 25 तय छ, “ कलह" मा५समा वायुद्ध-माता यादी ५ थाय छे. "वह " ५५ भा। भारी ५५ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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