SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९४ प्रश्रव्याकरणसूत्रे 'लोगो' लोकः = पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतितिर्यङ्नरामरनारकरूपः, 'अंडकाओ ' अण्डकात् 'संभूओ' संभूतः = उत्पन्नः तत्र अण्डकोदभूतलोकवादिनां मतमित्थं यत् पूर्व पृथिव्यादिपञ्चभूतरहितं जगत् केवलं जलमयमासीत् तत्र महदण्डं चिरकाल विक्लेदितं सत् स्फुटितं द्विधाजातं पृथिवीरूपम् आकाशरूपं च तत्र सुरासुरनारकतिर्यग् रूपं जगत् सर्व समुत्पन्नमित्येवमण्ड कात् सृष्टिः । ' सयं भुणा' स्वयम्भुवा च ब्रह्मणा ' सयं स्वयं ' निम्मिओ' निर्मितः = निष्पादितः इति केचित् ब्रुवन्ति । तथाहि दृश्यमान जगदुत्पत्तेः पूर्व पृथिव्यादि पञ्चभूतरहितं विनष्ट स्थावरजङ्गमामरनरगन्धर्वयक्षराक्षसकिन्न र गरुड महोरगादि सकलविविध , " (पण्णवेंति) प्ररूपित करते हैं, मृषावारूप वह दर्शन यह है - (लोगो अंडकाओ संभूओ ) यह पृथिवी अप, तेज, वायु वनस्पति, तिर्यच, मनुष्य, देव, नारकरूप लोक अंडे से उत्पन्न हुआ है । अंडे से लोक को उत्पन्न हुआ मानने वालों का मत इस प्रकार है यह लोक पहले पृथिवी आदि पाँचभूतों से रहित था, और केवल जलमय ही था । इसमें एक चिरकाल से गीला अंडा पड़ा हुआ था, जब वह फटा तो इसके दो टुकडे हुएएक टुकडा पृथिवीरूप हुआ और दूसरा टुकड़ा आकाशरूप हुआ- पृथिवी रूप टुकड़े में मनुष्य, तिर्यच, नारक आदिरूप तथा आकशरूप टुकड़े में सुर असुर आदिरूप समस्त जगत् उत्पन्न हो गया। इस तरह अंडे से यह सृष्टि हुई वे कहते हैं । ( सयंभ्रूणा सयं च निम्मिओ) कोई २ ऐसा भी कहते हैं कि यह जो दृश्यमान जगत् है वह उत्पत्ति से पहिले पहिले पृथिवी आदि पंचभूतों से रहित था । इसमें स्थावर, जंगम, अमर, આ छे. ते भृषावाहय दर्शन या प्रभानु छे" लोगो अंडकाओ संभूओ पृथ्वी, फ्यू, ते वायु, वनस्पति, तियंय, मनुष्य, देव भने नार४३५ बोअ ઈંડામાંથી ઉત્પન્ન થયા છે. ઇંડાંમાંથી સૃષ્ટિ ઉત્પન્ન થયેલ માનનારની આ પ્રકારની માન્યતા છે—આ લેકે પહેલાં, પૃથિવી આદિ પાંચ ભૂતાથી રહિત હતા. અને ફક્ત જળમય જ હતા તેમાં એક ચિરકાળથી ભીનું ઈંડું પડેલું હતું જ્યારે તે ફાટયું ત્યારે તેના બે ટુકડા થયા-એક ટુકડો તે પૃથિવીરૂપ થયા અને બીજો ટૂકડો આકાશરૂપ થયા. પૃથિવીરૂપ ટુકડામાં મનુષ્ય, તિય ઇંચ, નારક આદિ રૂપ તથા આકાશ રૂપ ટુકડામાં સુર અસુર આદિ રૂપ સમસ્ત સૃષ્ટિ ઉત્પન્ન થઈ ગઈ. આ રીતે ઇંડામાંથી સૃષ્ટિ ઉત્પન્ન થયાનુ તેએ દર્શાવે છે. भुणा यं च निम्मिओ" अ अ मेवु यागु उहे छे सा ने भगत नभरे पडे છે તે ઉત્પત્તિ પહેલાં પૃથિવી આદિ પાંચ ભૂતાથી રહિત હતું. તેમાં સ્થાવર, શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર ""
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy