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________________ सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० ४७ मनुष्यभवदुःखनिरूपणम् १५९ निरूपणेनैव तदन्तर्गतफल विपाकस्यापि तदुक्तत्वसिद्धौ पुनः पृथक् तस्य महावीरोक्तत्वाभिधानं प्राणिवधस्यैकान्तिका शुभफलदायकत्वात्तस्यात्यन्त हे यत्वद्योतनार्थम् । ' एसो सो' एप सः = पूर्वोपदर्शित स्वरूप: ' पाणवहो ' प्राणवधः 'चंडो' चण्डः=क्रोधजनकत्वात्, 'रुदो' रौद्रः - रौद्ररसप्रवर्तितत्वात्, 'खुद्द ' क्षुद्रः = अधमजनाचरितत्वात् 'साहसिओ' साहसिकः = असमीक्ष्यकारिजनप्रवर्त्तितत्वात्, अइभओ बीहणओ तासणओ अणज्जओ णिरवयक्खो, निद्धम्मो, निप्पवासो, निक्कलुणो, निरयवासगमणनिघणो, मोहमहरूभयपयट्टओ मरणवेमणस्सो. त्ति बेमि ) शंका- जब सूत्रकार ने ईस अध्ययन में महाविरोक्तता निरूपित की है तब यह बात तो स्वतः सिद्ध हो ही जाती है कि तदन्तर्गत फलविपाक भी उन्हीं द्वारा कहा गया है, फिर क्या बात है जो इसमें पृथक् रूप से महावीरोक्तता प्रतिपादित की जा रही है ? उत्तर- शंका ठीक है, परंतु इसका अभिप्राय केवल इतना ही है कि पुनः इसमें जो तदुक्तता प्रतिपादित की है उससे उसमें प्राणिवध मेंऐकान्तिक अशुभफलदायकता होने से अत्यन्त हेयता प्रकट की गई है। यही बात सूत्रकार इन आगे के पर्दों द्वारा स्पष्ट करते हैं - ( एसो सो ) पूर्वोपदर्शित स्वरूप वाला यह ( पाणवहो) प्राणवध - ( चंडो ) क्रोधजनक होने से चण्ड है, ( रुद्दो ) रौद्र रस द्वारा प्रवर्तित होने से रौद्र है, ( खुद्दो) अधमजनों द्वारा आचरित होने से क्षुद्र है, ( साहसिओ ) वीहणओ तासणओ अणज्जओ णिरवयक्खो, निद्धम्मो, निष्पिवासो, निकलुणो निरवागमण निघणो, मोहमहन्भयपयहओ मरणवेमणस्सो तिबेमि " શંકા—જ્યારે સૂત્રકારે આ અધ્યયનમાં મહાવીરાક્તતાનું નિરૂપણ કર્યું" છે ત્યારે તે વાત તે આપોઆપ સિદ્ધ થઈ જ જાય છે કે તેમાં આવતા ફલવિપાક પણ તેમના દ્વારા કહેવાયેલ છે, તેા શા કારણે તેમાં અલગ રીતે મહાવીરાક્તતાનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવેલ છે ? ઉત્તર-શંકા ખરાખર છે પણ તેના ઉદ્દેશ કેવળ એટલા જ છે કે ફરીથી તેમાં જે તેમના દ્વારા કથિત હોવાનું પ્રતિપાદન કર્યું છે તેથી તેમાં પ્રાણીવધમાં એકાન્તિક અશુભ લદાયકતા હોવાથી અત્યંત હેયતા પ્રગટ કરાઇ છે. मेवात सूत्रार भागज भावतां या हो द्वारा स्पष्ट उरे छे-" एसो सो" भागण हर्शाविवामां आवे स्वयवाणी ते “ पाणवहो " चण्डो પ્રાણવધ " धन्न होवाथी थउ छे, " रुद्दो" रौद्ररस द्वारा प्रवर्तित होवाथी रौद्र छे, अधभ बोओ द्वारा आयरित होवाने शरणे क्षुद्र छे, “साहसिओ " 'खुद्दो શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર 66 " "
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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