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________________ १२४ __ प्रश्रव्याकरणसूत्रे सर्वदेहः सकलशरीरं येषां ते तथा, 'विसूणियंगमंगा' विशूनिताङ्गोपाङ्गा = विशूनितानि-नानाविधमहारैः संजातशोथानि, कलकलायमानजलसेचनेन समुत्पन्नस्फोटकानि वा अङ्गोपाङ्गानि येषां ते तथा, एवं परमाधार्मिकैः कर्थिताः सन्तो नरकजीवा महीतले कठोरनरकभूमौ विलोलंति' विलुलन्ति-विलुठन्ति ॥सू०३५॥ ततः किं भवती ? त्याह-' तत्थ य विग' इत्यादि । मूलम्-तत्थ य विग सुणग-सियाल-काक-मज्जार-सरभदीविय-वियग्घ-सदल-सीह-दप्पिय-खुहाभिभूएहिं णिच्चकालमणसिएहिं घोरारसमाणभीमरूवेहिं अकमित्ता दढदाढा-गाढडक्क-कड्डिय-सुतिक्खनहफालियउद्धदेहा विच्छिप्पं ते समंतओ विमुक्कसंधिबंधणा वियंगमंगा कंककुररगिद्धघोरकवायसगणेहिं य पुणो खरथिरदढणक्ख-लोहतुडेहिं ओवइत्ता पक्खाहयतिक्खणक्खविकिन्नजिब्भलियनयणनिदओलुग्गविगतवयणा उक्कोसंता य उप्पयंता नियडंता भमंता ॥ सू०३६॥ टीका-तत्र च 'विग' वृकाः ईहामृगाः । भेडिया' इति प्रसिद्धाः रित हो चुका है ऐसे (विसूणियंगमंगा ) तथा नाना प्रकार के प्रहारों से जिनमें सूजन आगई है, अथवा कलकलायमान क्षार जल के सिंचन से जिन पर फफोले पड़ गये हैं ऐसे अंग उपांग वाले वे नारकी जीव परमाधार्मिकों द्वारा कदर्थित होकर ( महीतले ) नरक की कठोर भूमि पर ( विलोलंति ) लोटते हैं ॥ सू. ३५ ॥ ___इसके बाद क्या होता है ? इस बात को सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं-'तत्थ य विग-सुणग' इत्यादि। टीकार्थ-(तत्थ य) उन नरकोंमें (विग-सुणग-सियाल-काक-मज्जारછે તેવા, અથવા કળકળતા ક્ષારયુક્ત જળના સિંચનથી જેમનાં અંગ ઉપાંગો પર ફેલ્લા પડી ગયા છે. એવા નારકી જીવ પરમાધામિર્ક દ્વારા યાતનાઓ. पाभान “ महीतले " न२४नी ४२ भूमि ५२“ विलोलंति" ५डीय छ. ॥सू-34॥ त्या२४ शु थाय छे. ते वात सूत्र४२ मताव छ-" तत्थ य विगसुणग" Vत्यादि. -"तत्थ य” ते न२मा “विग-सुणग-सियाल-काक-मज्जार-सरभ-दीविय શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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