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________________ १०८ प्रश्रव्याकरणसूत्रे ‘जमकाइय तासिया' यमकायिक त्रासिताः-यमकायिकैः पञ्चदशविधैः परमाधार्मिकैः अम्बाम्बरीषादिभि सिताः त्रासं प्रापिताः 'भीया' भीताः= भयव्याकुलाः सन्तः 'सई' शब्दं वक्ष्यमाणमकारमातनादं करेंति' कुर्वन्ति । 'किं ते ' के ते आतशब्दाः ? इत्याह- अविभाये 'त्यादि ‘अवि' अपिवाक्यालङ्कारे 'भाय' भाग-हे महाभाग-सामर्थ्यवत्त्वात् , 'सामि' हे स्वामिन् ! अधिपतित्वात् , 'भाय ' हे भ्रातः ! - सहायकत्वात् , 'बप्प' हे पितः! - पालकत्वात , 'ताय' हे तात ! -त्रायकत्वात , ' जितवं' हे जितवन् ! =हे विजयिन् ! - विजयशालित्वात् , 'मुय मे' मुञ्च मां 'मरामि' म्रिये, अहं ' दुब्बलो' दुर्बला बलहीनः 'वाहि पीलिओ' व्याधि पीड़ितः, 'कि' किमर्थं त्वम् ‘इदाणि' इदानीम् अस्मिन्-समये 'दारुणो' कठोरः, 'णिद्दओ' समुद्रों में भी पाये जाने वाले तिर्यच-उत्तमपुरुष-तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, आदि, एवं चरमशरीरी-उसी भव से मोक्ष जाने वाले जीव, ये सब निरूपक्रम आयुवाले होते हैं ॥१॥ ___ पापी जीव वहां (जमकाइयतासिया) यमकायिक-पन्द्रह प्रकार के परमाधार्मिक अम्ब और अम्बरीष आदि देवों के द्वारा त्रास को प्राप्त कराये जाते हैं । (भीया) इसलिये भय से सदा व्याकुल बने हुए वे वहां पर (सई) आर्तनाद (करेंति) किया करते हैं (किं ते ?) वे कौन २ शब्द करते हैं ? वही कहते हैं-(अविभाय) हे महाभाग ! (सामि) हे स्वामिन् ! (भाय) हे भाई! (वप्प) हे पिता ! (ताय) हे तात ! (जितवं) हे विजयन् ! (मुय मे) तू मुझे छोड़ दे, (मरामि) मैं मर रहा हूं, (दुब्बलो) मैं बलहीन हूं, (वाहिपीलिओहं) व्याधि से पीडित हो रहा हूं, (किं इयाणि) क्यों इस समय तुम मेरे उपर (एवं) इस प्रकार से (दारुणो निद्दओ य असि) तिय"य, उत्तम ५३५-तीर्थ ४२, Aqी , महेव, पासुहेव साह, मने २२भશરીરી–એજ ભવમાં મોક્ષે જનારા જીવો, એ સઘળા નિષ્પકમ આયુષ્યવાળા हाय छ ॥१॥ त्यां पापी छ “ जमकाइय तासिय" यायि४-५४२ मारना ५२भाषाभि २१५ मने मरीष माहि द्वारा त्रास पामे छ, “भीया" तेथी भयथी व्या मनेसाते व त्यां " सई” मात्तनाह " करें ति" ४३ छ. " किंते ?” तेसा वा वा शह मासे ? ते डो ४ामा मावे छे. " अविभाय" महामा! “ सामि" है स्वाभिन ! “भाय " मा ! “वप्प" पिता! 'हे ताय" तात!" जितव" वियी ! "मुय में" तु भने छोडी है, “मरामि" हुँ भरी रह्यो छु, “ दुब्बलो" नि छु, “वाहिपीलिओहं” व्याधिथी पी४ २शो छु, “ कि इयाणि" सत्यारे तमे भा। प्रत्ये "एवं" मा रीते "दारुणो निद्दओ य असि” ४२ मने निय શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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