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प्रश्नव्याकरणसूत्रे अथ चतुरिन्द्रियादीनां हिंसामयोजनमाह-' हिंसंति य' इत्यादि।
मूलम्-हिंसंति य भमरमहुकरिगणे रसेसु गिद्धा, तहेव तेइंदिए सरीरोवकरणट्टयाए किवणे, बेइंदिए बहवे वत्थोहर परिमंडणहा ॥ सू० १२ ॥
टीका-'ये' च-पुनः ‘रसेसु' रसेषु-मध्वादिषु 'गिद्धा 'गृद्धाः तद्रसलोलुपाः हिंसकाः जना मध्वादि ग्रहणार्थ 'भमरमहकरिगणे' भ्रमरमधुकरीगणान्भ्रमराः कृष्णवर्णाः लोकभाषया पुंस्त्वविशिष्टाः, मधुकर्यः लघुमधुमक्षिकाः लोक भाषया स्त्रीत्वविशिष्टाः, तेषां गणान् समूहान् हिंसन्ति । 'तहेव' तथैव 'तेइंदिए' त्रीन्द्रियान्-यूकामत्कुणादीन् 'सरीरोवकरणयाए' शरीरोपकरणार्थ-शरीरस्योपकारार्थ शयनकाले मत्कुणादिकृतदुःखनिवारणार्थ हिंसन्ति । तथा 'किवणे' कृप___ अब सूत्रकार चतुरिन्द्रिय आदि जीवों की हिंसा करने वालों का क्या प्रयोजन होता है-इस बात को प्रकट करते हैं-'हिंसंति य भमरमहुकरिगणे' इत्यादि।
टीकार्थ-(रसेसु गिद्धा) जो अबुध-अज्ञानी जन मधु (शहद) आदि रसों में लोलुप होते हैं वे उन मधु आदि रसों को पास करने के अभिप्राय से (भमरमहुकरिगणे हिंसंति ) भ्रमर भ्रमरियों के समूह मारते हैं। भ्रमरियों से, मधुको एकत्रित करने वाली मधु मक्खियों का यहां ग्रहण करना चाहिये । (तहेव ) इसी तरह (किवणे) दीन ऐसे (तेइंदिए ) जू खटमल आदि तेइन्द्रिय जीवों की ( सरीरोवकरणद्वयाए ) अपने शरीर के उपकार के लिये अर्थात् शयनकाल में जोखटमल आदि द्वारा उनके शरीर में काटने जन्य दुःख होता है उस दुःख को निवारण करने
હવે ચતુરિન્દ્રિય આદિ જીવોની હિંસા કરનારનું શું પ્રયોજન હોય છે, ते सूत्रा२ प्रगट ४३ छ-" हिंसंति य भमरमहुकरिगणे" छत्यादि
___ -"रसेसु गिद्धे" मसुध-मज्ञानी मधु-मध माहि सोमा सोलु५ थाय छ तेस ते भर माह सोने प्रात ४२वाने भाटे “भमरमहुकरगणे हिंसति" श्रम तथा श्रमरीमाना समूडनी हत्या २ छे. भरीस सटो मही भय मे ४२नारी मधमानीय समन्वी "तहेव" मे प्रमाणे "किवणे" मिया। "तेइंदिए" , मा माहि तन्द्रिय वानी हत्या "सरी. रोवकरणद्वयाए” पोताना शरी२॥ ७५४।२ने भाटे मेले में सूती quते भां આદિ જે જંતુ કરડે છે અને ઉંઘમાં ખલેલ પહોંચાડે છે તે દુખના નિવા
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર