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अनुक्रमांङ्क
१ मङ्गलाचरण २ अवतरणिका
प्रश्नव्याकरणसूत्रकी विषयानुक्रमणिका
विषय
प्रथम अध्ययन - प्रथम भाग
३ आस्रव और संवर के लक्षणों का निरूपण पहला अधर्मद्वार का निरूपण
४
66
५
६
७
१४-१८
१९-२६
२७-३५
३६-३९
४०-४२
८
४३-४४
९ भुजपरिसर्प के भेदों का निरूपण
४५-४६
१०
खेचर जीवों का निरूपण
४७-५०
११ प्राणियों के वधके प्रकार का निरूपण
४१-५३
१२ चतुरिंद्रिय जीवोंकी हिंसा करने वालोंके प्रयोजनका निरूपण ५४-६२ १३ पृथिवीकाय जीवों के हिंसा के कारण का निरूपण
६३-६७
१४ अप्काय जीवों की हिंसा करने के प्रयोजन का निरूपण
६८
6
१५ वायुकाय ' जीवों की हिंसा करनेके प्रयोजनका निरूपण ६९-७० १६ ' वनस्पतिकाय' जीवोंकी हिंसा करने के प्रयोजनका निरूयण ७१-७४
१७ स्थावरादि जीवों को कैसे २ भावों से युक्त होकर हिंसक जन मारते हैं उनका निरूपण
१८ जातिनिर्देशपूर्वक मंदबुद्धि वाले लोक कौन २ जीवों को मारते है उनका निरूपण
46
मृषावादरूप " दूसरा अधर्मद्वार यथाकृत् " नामके तीसरा अधर्मद्वार का निरूपण
का निरूपण
स्थलचर चतुष्पद प्राणीयों का निरूपण
66
उरः परिसर्प " के भेदों का निरूपण
पृष्ठां
१–२
३-१३
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
७५-८४
८५-८६
१९ कौन २ जीव पाप करते है उनका निरूपण
८७-९०
२० जैसे २ कर्म करते है वैसा ही फल प्राप्त होनेका निरूपण ९१-९६ २१ नरक में उत्पत्ति के अनन्तर वहां के दुःखानुभवका निरूपण ९७-१०४ २२ पापि जीव नरकों में कैसी २ वेदना को कितने काल भोगते
है उनका निरूपण
१०५-१०६