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________________ श्री अनुत्तरोपपातिकसूत्रे यतनार्थ मुखवस्त्रीं, वध्नाति सदोरकां मुखे नित्यम् । यो मुक्तरागदोषो, वन्दे तं गुरुवरं शुद्धम् ॥२॥ अनुत्तरोपपातीय,-सूत्रटीकाऽर्थबोधिनी ।। भव्यानां सुखबोधाय, घासीलालेन तन्यते ॥३॥ धरते सदोरकवस्त्रिका मुख पर अहिंसा के लिये । करुणासुधामय चित्त जो धरते सदा सबके लिये । रागदोषविहीन गुरुवर-शुद्ध-पदपाथोजमें मकरन्दपायिमिलिन्द तुल्य प्रणाम राजें ओजमें ॥२॥ अनुत्तरोपपातिकसूत्रकी टीका शुभार्थविबोधिनी अल्पज्ञ जनताके लिये सुगमार्थ भावविकाशिनी ॥ करते मुनिव्रत सक्त "घासीलाल" यह कृति यत्नसे उपकृत कृतज्ञ सुबुद्धिजन होंगे महा इस रत्नसे ॥३॥ इहानुत्तरोपपातिकसूत्र भगवता यस्य यस्य विषयस्य वणनमकारि तस्य तस्य नाम संक्षेपतस्तावन्निदिशामः। एतद्विपये नन्दिसूत्रे यथा-राजगृहादीनि नगराणि, तत्र तत्रावस्थितानि (२) जो जीवोंकी रक्षा अर्थात् यतनाकेलिये मुखपर सदैव डोरे सहित मुखवस्त्रिका बांधते हैं, तथा जो रागदेषसे रहित हैं, ऐसे निर्मल आचारको पालनेवाले सुगुरुको मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥ (३) मैं "घासीलाल" मुनि भव्यजीवोंके सुखपूर्वक ज्ञान प्राप्ति के लिये श्री अनुत्तरोपपातिकसूत्रकी अर्थबोधिनी टीका बनाता हूँ ॥३॥ उपरोक्त श्लोकोंमें मङ्गलाचरण तथा विषय, सम्बन्ध, प्रयोजन और अधिकार ये मुख्य पांच बातें बताई हैं, जो कि प्रत्येक ग्रन्थमें आवश्यक हैं। (૨) જે છાની રક્ષા અર્થાત્ યતનામાટે દેરા સહિત સદા મુખવસ્ત્રિકા મુખ પર બાંધે છે, તથા જે રાગ દ્વેષથી રહિત છે એવા નિર્મળ આચાર પાળવા વાળા સુગુરુને હું નમસ્કાર કરું છું. (૨) (3) "दु घासी सास" भुनि भव्य वाने सुमपूर्ण ज्ञान-प्राप्तिने भाटे श्री 'अनुत्तरोषपाति सूत्र'नी 'अर्थमाधिनी' टी मनाई छ. (3) ઉપરોકત લોકોમાં મંગલાચરણ તથા વિષય, સમ્બન્ધ, પ્રોજન અને અધિકારી, એ મુખ્ય પાંચ વાતે બતાવી છે. જો કે પ્રત્યેક ગ્રંથમાં તે આવશ્યક છે. શ્રી અનુત્તરોપપાતિક સૂત્ર
SR No.006337
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages218
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuttaropapatikdasha
File Size10 MB
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