________________
८२
श्री अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रे ___'अड्ढा जाव अपरिभूया,' इति 'अड्ढा' इत्यारभ्य 'अपरिभूया' इत्येतत्पर्यतोक्तसमस्तविशेषणविशिष्टेत्यर्थः, तेन 'अड्ढा दित्ता वित्थिणविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइण्णा, बहुधणबहुजायरूवरयया, आओगपओगसंपउत्ता, विच्छुड्डियविउलभत्तपाणा, बहुदासीदासगोमहिसगवेलयप्पभूया, बहुनणस्स अपरिभूया इति पाठस्य संग्रहः ।
तत्र आढया महती, धनधान्यादिसंपन्ना वा । दीप्ता-सदाचारगुणैरूज्ज्वला, दर्पिता धर्मगौरवगर्विता वा । विस्तीर्णविपुलभवनशयनासनवाहना
मेय-उन विक्रेय पदार्थो को कहते हैं जो वली गज, वार, हाथ अथवा किसी माप-विशेष के द्वारा माप कर दिये जाते हों, जैसेदूध, घी, तेल, वस्त्र आदि । ___परिच्छेद्य-उन विक्रेय पदार्थों को करते हैं जो प्रत्यक्ष रूपसे कसौटी अथवा अन्य किन्हीं उपायों द्वारा परीक्षा करके दिये-लिये जाते हों; जैसे-माणिक, मोती, मूंगा सोना आदि।
___ 'अड्ढा जाब अपरिभूया'-'अढा' शब्दसे लेकर 'अपरिभूया' पर्यन्त समस्त विशेषण पदोंका निम्न अर्थ है
अडढा-आढथा अपार धन धान्यसे सम्पन्न, दित्ता-दीप्ता-शील, सदाचार आदि गुणोंसे प्रकाशित, दित्ता-दर्पिता धर्म गौरव से गर्वित, अर्थात् वह भद्रा सार्थवाही अत्यधिक धनधान्यसम्पन्न, शील-सदाचाररूपी गुणोंसे प्रकाशित तथा अपने गौरव से युक्त थी। उसके विस्तृत अनेक भवन, पलंग, शय्या, सिंहासन, चौकी आदि, यान-गाडी,
'मेय' ते विध्य पहानि छ , जी, ८, पा२, ४ाय अथवा भा५ विशेषद्वारा माथी २०७१य; भ-दूध, घी, तेस, ख, माहि.
"परिच्छेद्य'-ते पहान ४ छ २, प्रत्यक्ष३पे सोटरी अथवा अन्य Sपायापरीक्षा ४ वाय, मथवा सेवाय; रेभ-भा४, माती, भु, सोनु, माहि.
'अड्ढा जाब अपरिभूया' '28t' ४थी १४ अपरिभूया' पय-त समस्त વિશેષણ પદેન નીચે પ્રમાણે અર્થ છે
'अइहा'-अपार धन-धान्यथा सम्पन्न, 'दित्ता'-हता,-शास सहाया२ मा माथी प्राशित, 'दित्ता' हर्षिता-धर्म-गौरवथा गर्वित अर्थात ते मी सार्थवाही ઘણાં ધન ધાન્યથી સમ્પન્ન, શીલ–સદાચાર રૂપી ગુણેથી પ્રકાશિત તથા પિતાના ગૌરવથી युत उती. तेन विस्तृत मने सवन, ५, शय्या, सिंहासन, पारस माहि, यान
શ્રી અનુત્તરોપપાતિક સૂત્ર