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________________ (४) तथा हमें दुष्ट व शत्रु समझकर जो भी कष्ट पहुंचावें तों कष्ट पहुंचाने वालोंके प्रति सहृद्यता प्रगट कर मध्यस्थभावसे आपत्तियोंको सहन करनेमें मोक्ष प्राप्ति है । इस प्रकार चार बातोंकी शिक्षा इस तीसरे अध्ययनमें है। आखे-काश्यप गाथापति के चौथे अध्ययनसे मेघगाथापति का चौदहवां अध्ययन तक संक्षिप्त वर्णन है। पन्द्रहवे अध्ययनमें पोलासपुर नगरके विजयराजा के पुत्र एवन्ता (अतिमुक्त) कुमारका वर्णन है। ये कुमार एक समय बालक्रीडा स्थानमें खेल रहेथे, उस समय उधरसे गौतमस्वामीको भिक्षाके लिये जाते देखकर कुमार दौडकर गौतमस्वामीको पूछा, आप कहां पधारते हैं ! जब गौतमस्वामीने-भिक्षाके लिये जाते हैं, ऐसा कहा तो कुमार गौतमस्वामीके हाथकी अंगुली पकड कर अपने महल ले गये। अपने हाथसे गौतम स्वामीको पकड कर लाते हुए एवंता कुमार को देख कर श्रीदेवी महारानी बहुत खुश हुई, और उन्होंने गौतमस्वामी को भावयुक्त वंदन कर आहार पानी बहराया। एवंता कुमार गौतमस्वामीके साथ श्री महावीरप्रभुके पास जाकर वाणी श्रवण की। वाणी श्रवणसे वैराग्ययुक्त हो मातापितासे दीक्षाके लिये आज्ञा मांगी। तब मातापिताने कहा कि तूं अभी बालक है, चारित्रमें तूं क्या समझ सकेगा ! इसके प्रत्युत्तरमें कुमारने जो उचित उत्तर देकर अपनी योग्यता दिखाई वह बालदीक्षा विरोधियोंके लक्षमें लेने योग्य है। एवंता कुमार भी संयम तप अनुष्ठानके बलसे कर्म क्षय कर मोक्ष प्राप्त हुए । सोलहवें अध्ययनमें वाराणसी के अलक्ष राजाका वृत्तान्त है, इन्होंने भगवान महावीरका उपदेश सुनकर संसार त्याग किया, और ये संयम तप आदिके बलसे कर्मक्षय करके मोक्षमें गए। सातवां वर्ग सातवें वर्गमें श्रेणिक महाराजकी नन्दा नन्दवती आदि तेरह महारानियों का संक्षिप्त कथन है। ये तेरह महारानियाँ संयम तपद्वारा कर्म क्षय करके मोक्ष पहुंची। શ્રી અન્નકૃત દશાંગ સૂત્ર
SR No.006336
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrut Dashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages390
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_antkrutdasha
File Size18 MB
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