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द्वितीय वर्ग
__ दूसरे वर्ग में द्वारका के अन्धक विष्णु राजा व धारिणी रानी के अक्षोभ सागर आदि आठ कुमारों का वर्णन है । ये आठों कुमार श्री अरिष्टनेमि भगवान के समीप दीक्षा लेकर गौतम कुमार के समान ही संयम तप द्वारा कर्म क्षय करके केवलज्ञान केवलदर्शन को प्राप्त हो मोक्ष गए ।
तृतीय वर्ग
भदिलपुर नगरमें नाग नाम के गाथापति रहेते थे, उनकी पत्नी का नाम सुलसा था । उनके कुमार का नाम अणियसेन था, जो बुद्धिमान व कलाविशारद था । तृतिय वर्ग के प्रथम अध्ययन में इसी कुमारका वर्णन है । तरुणवयके प्रारंभ में कुमारका बत्तीस इभ्य सेठों की कन्याओं के साथ विवाह हुआ और प्रत्येक इभ्य सेठने दहेज में एक एक करोड सोनामोहरें दीं । जब कुमार यौवन वय के मध्य में पूर्ण भोगोपभोगमय जीवन बिता रहे थे तब उन्हें त्यागमय जीवन बनानेका उपदेश देने के लिये वहां श्री अरिष्टनेमि प्रभु प्रधारे। प्रभु के पधारने के समाचार सुनकर अणियसेन कुमार दर्शन व वन्दन के लिये गये और वहां जाने पर भगवान की संसार निस्तारिणी वाणी सुनकर वे दीक्षित हुए । दीक्षा लेने के बाद सामायिक से प्रारंभ करके चौदह पूर्वका अध्ययन किया । बीस वर्ष तक कठोर संयम पालकर अन्तिम समय एक मासका संथारा करके केवलज्ञान केवलदर्शन पाकर मोक्षको प्राप्त हुए । अनन्तसेन, अजितसेन, अनिहतरिपु, देवसेन और शत्रुसेन आदि पांच कुमार भी अणियसेन कुमार के ही भाई थे । इन सभी भ्राताओंका विवाह भी बत्तीस २ कन्याओं से हुआ और युवावस्था के मध्यमें श्री अरिष्टनेमि भगवान से उपदेश सुनकर दीक्षा धारण की और चौदह २ वर्ष तक चारित्र पालन करके अन्तमें पांचों अनगार एक मास के संथारे के साथ केवलज्ञानको पाकर मोक्ष गए।
શ્રી અન્નકૃત દશાંગ સૂત્ર