________________
॥ अन्तकृतदशाङ्गसूत्र की विषयानुक्रमणिका ॥ अनुक्रमाङ्क विषय
पृष्ठसंख्या जालिकुमारादि का वर्णन।
१२७-१३१ ४४ पञ्चम वर्ग में रहे हुए अध्ययनों का नामनिर्देश । १३२-१३३ ४५ अरिष्टनेमि का आगमन, कृष्ण और पद्मा
वती का उनके दर्शन के लिये जाना, और द्वारका के विनाश के विषय में कृष्ण और अरिष्टनेमि का संवाद।
१३४-१३७ कृष्ण का आध्यात्मिक विचार ।
१३८-१४० वासुदेव की प्रव्रज्या के अभाव का कारण । १४१-१४३ कृष्ण का अपने विषय में प्रश्न। अरिष्टनेमि-द्वारा भावी तीर्थकर के रूप में कृष्ण की। उत्पत्ति का निर्देश।
१४४-१४५ कृष्ण-द्वारा द्वारका में लोगों को प्रव्रज्या लेने की घोषणा करने के लिये कौटुम्बिक पुरुषों को आदेश । १४६-१४९ कौटुम्बिकों द्वारा कृष्ण की आज्ञा की घोषणा। १४९ पद्मावती का दीक्षासमारोह ।
१५०-१५२ पद्मावती का दीक्षाग्रहण करना।
१५३-१५७ पद्मावती की सिद्धिगतिप्राप्ति ।
१५८-१५९ गौरी-आदि का दीक्षाग्रहण और सिद्धिपद की प्राप्ति । १६०-१६२ मूलश्री-मूलदत्ता का चरित्र ।
१६३-१६४ षष्ठवर्ग का प्रारंभ।
१६५-१६६ मङ्काई और किङ्कम का चरित्र ।
१६७-१७० मुद्गरपाणि-यक्षायतन का वर्णन ।
१७१-१७२ अर्जुन के दिनकृत्य का वर्णन ।
१७३-१७४ अर्जुन का पत्नी के साथ पुष्प बीनने के लिये जाना । १७५-१७६ गौष्ठिक पुरुषों का बन्धुमती के प्रति दुर्भाव । १७७-१७८ गौष्ठिक पुरुषों द्वाराबन्धुमती का शीलध्वंस और अर्जुन का यक्ष के अस्तित्व में अविश्वास ।
१७९-१८०
શ્રી અન્તકૃત દશાંગ સૂત્ર